Book Title: Jivvicharadi Prakaran Sangraha
Author(s): Jinduttasuri Gyanbhandar
Publisher: Jinduttasuri Gyanbhandar

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Page 275
________________ गत ते ऋजुसूत्रनी अपेक्षायें अछतो छे केमके अतीत तो विणसीगयो छे अने अनागत आव्यों नथी तेवारें अतीतअनागत ए वे अवस्तु छे अने जे वर्तमानपर्यायें वर्ते ते वस्तुपणो छे जे पूर्वकाल पश्चात्काल लेयी वस्तु कहेवी ते नैगमनय छे आरोपरूप छे तिहां कोइ पुछे जे संसारीसकर्मा जीवने सिद्धसमान कहे छे ते तो अनागतकालें सिद्ध थशे तो तमे अनागतने अवस्तु केम कहोछो तेनो उत्तर जे हे भव्य ! ए अनागत भावि माटे कहेता नथी एतो वर्तमान सर्व गुणनी छति आत्मप्रदेशे छे ते आवरण दोषें प्रवर्तति नथी तेथी तिरोभावीपणा माटे संग्रहनयें कहियें पण वस्तुमां सर्व केवलज्ञानादि गुण छता वर्त्ते छे ते माटे सिद्ध कहियें छैयें. अने जे वस्तु ते नामादिक पर्याय सहित वर्त्ते छे माटे नामादिक निक्षेपा ते सर्व ऋजुसूत्रनयना भेद छे तथा नामादिक ऋण निक्षेपा तो द्रव्य छे अने भावते भाव छे ए व्याख्या कारण कार्यभावनी वेंचण करियें ते माटे छे पण वस्तुमां सहज चार निक्षेपा ते भाव धर्मज छे तथा ए स्वस्वकार्यना कर्त्ताज छे ए ऋजुसूत्रना वे भेद दिगंबर कहे छे, १ सूक्ष्मऋजुसूत्र, २ स्थूलऋजुसूत्र जे वर्तमानकालनो एक समय तेने सूक्ष्मऋजुसूत्र कहियें अने जे बहुकालि ते स्थूलऋजुसूत्र ए पण कालापेक्षी भाव छे तथा ए भावनय छे अने योगावलंबीपणो ते बाह्य छे तेपण द्रव्य माटे एक द्रव्य | मध्ये गणे छे ए ऋजुसूत्रनय कह्यो. 'शप आक्रोशे' शपनमाह्वानमिति शब्दः, शपतीति वा आह्वानयतीति शब्दः, शप्यते आहूयते

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