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नयचक्रसार मूळ
॥१०६॥
ROHOSPOSTAS SAUSOSASTOG
छतो छ पण अछतादिक धर्मनी छति सापेक्ष राखवाने स्यात्पूर्वक कहेवो एटले स्यात्अस्तिघटः ए प्रथम भंगो जाणवो
बालावतथा जीवादिद्रव्यने विषे जीवना ज्ञानादिगुण तेने पर्यायें जीवद्रव्यने नित्यादिस्वभावें करीने स्यात्अस्तिजीवः एम
बोधसहित सर्व द्रव्यने कहेवो. यद्यपि जीव तथा अजीवनो नित्यपणो सरिखो भासे पण ते एनो तेमां नही अने तेनो एमां नही जो पण जीव सर्व एकजातीय द्रव्य छे पण एकजीवमा जे ज्ञानादिगुण छे ते बीजा जीवमां नथी माटे सर्व द्रव्य स्व-18 धर्मेज अस्ति छे. अने परधर्मनास्ति छे एम स्यात् अस्तिजीव ए प्रथम भंग जाणवो. ___ तथा पटादिगतैस्त्वक्त्राणदिभिः परपर्यायैरसद्भावेनार्पितः अविशेषितः अकुंभो भवति सर्वस्यापि || ___ घटस्य परपर्यायैरसत्वविवक्षायामसन् घटः एवं जीवोऽपि मूर्त्तत्वादिपर्यायैः असत् जीव इति
द्वितीयो भङ्गः॥ का अर्थ-पटने विषे रह्या त्वक् जे शरीरनी चामडीने ढांके, लांबो पथराय इत्यादि पर्याय ते घटना पर्याय नथी, पर पर्याय छे पटने विषे रह्या छे, घटनेविषे ए पर्यायनी नास्ति छे तेथी ए पर्यायनो असद्भाव छे ते माटे ए घटना पर्याय नथी. एम सर्व पर्यायें घट नथी तेवारें पर पर्यायना अछतापणानी विवक्षायें अछतो घट छे, एम जीव पण मूर्तिपणादिक अचेतनादि पर्यायनो जीवमध्ये असत्-अछतापणो तेथी जीव पर पर्याये नास्ति छे. माटे स्यात् नास्ति ए बीजो भांगो
॥१०६॥ जाणवो. केमके परपर्यायनी नास्तितार्नु परिणमन द्रव्यने विषे छे.