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आगमसार
॥७२॥
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७ भोगोपभोग परिमाण व्रत कहे छे जे एकवार भोगवq ते भोग अने जे वारंवार भोगवद् ते उपभोग तेनो परि-टू प्रकरणम् माण करे ते व्यवहार भोगौपभोग व्रत कहिये अने जे व्यवहारनयें कर्मनो कर्ता भोक्ता जीव छे अने निश्चय नये तो कर्मनो कर्ता कर्म छे आत्मा अनादिनो परभाव भोगी थयो छे तेथी परभावग्राहक अने परभावरक्षक थयो एटले 18 आत्मानी ज्ञायकता ग्राहकता भोग्यता रक्षकता बीगडे कर्ता पणो बीगड्यो तेवारें परभाव कर्ता थयो ते पण परभाव रंगीपणे आठ कर्मनो कर्ता थयो छे पण सत्तायें तो स्वभावनो कर्ता छे पण उपगरण अवराणा तेथी स्वकार्य करी
शकतो नथी विभावने करे छे अज्ञान पणे जीवनो उपयोग मल्यो छे पण न्यारो छे पोताना ज्ञानादिक गुणनो कर्ता| दाभोक्ता छे एहवो स्वरूपानुयायी परिणाम ते निश्चे भोगोपभोग व्रत त्याग जाणवो.
८ अनर्थदण्ड विरमण व्रत कहे छे. जे काम विना जीवनो वध करवो पारकावास्ते आरंभ प्रमुख करवानी आज्ञा प्रमुख आपवी ते व्यवहार अनर्थ दंड अने शुभाशुभ कर्म ते मिथ्यात्व अविरति कषाय योगथी. बंधाय छे तेने जीव आपणा करी जाणे ए निश्चेथी अनर्थदंड. ___९ सामायक व्रत कहे छे. जे मनवचनकायाना आरंभ टालीने तेने निरारंभपणे व वे ते व्यवहार सामायक जाणवो अने जे जीवना ज्ञान दर्शन चारित्र गुण विचारे सर्व जीवना गुणनी सत्ता एक समान जाणी सर्व जीव साथे समता परिणामें वर्ते ते निश्चंथी समतारूप सामायक कहिये.
।।।७२॥ १० देशावगाशिक व्रत कहे छे. जे मन वचन कायाना योग एक ठोर करी एकस्थानकें बेसी धर्म ध्यान करवो ते 21