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प्रकरणम्
आगमसार
SISTIROSASSASSASAS
गणी नहीं तथा आचारांगसूत्रे बीजा साधु अजाणे पण शर्करानी भूले लूण वीहरीने पछे जाणे जे लूण वीहराव्यो ते जाणी ते पोते खायेते पोते पीये तथा बीजा साधु संभोगीने आपे ते खाये पीए तथा विषम वाटे बेलने रूखने लताने गुच्छाने अवलंबी उतरे जे पाठ आचारांगसूत्रे छे तथा भगवती सूत्रमे साधुना हरस काढे तेहने क्रिया कर्म लागे नहीं तथा मल्लिनाथजी पूतलीमे कवल मुक्या ते माटे धर्ममाटे हिंसाकरी तथा सुबुद्धि मंत्रीए पाणी पलटाव्यो ते धर्म माटे करी पिण मंदबुद्धि न कह्या छे भगवती सूत्रे २५ मे शतके साधु शासन माटे तेजो लेश्या मुके तेहने है आराधक कह्यो तथा जंबूद्वीपन्नत्तीए निर्वाणमहोच्छव कस्यो छे थूभकर्या ते जिणभत्तिए धम्मोत्ति एपाठ छे इंम केटला पाठ लीखीए अनेक पाठ छे तथा नंदी सूत्रे जे आगम कह्या ते उत्थापीने ३२ मानोछो ते केनी आज्ञा छे तथा आवश्यकसूत्र पडिकमणा विना साधु पणो श्रावक पणो हूवेज नही ते तुम्हे आवश्यकसूत्र पडिकमणो मानता नथी तो श्रावकपणो ने साधुपणो केम धरावोछो श्रीभगवतीसूत्र साधु साध्वी श्रावक श्रावीका पंचमा आराना छेहडा पर्यत कह्या छे ते तुमारी श्रद्धामें हिवणां साधु साध्वी कोणछे तथा सूत्रे आचरज उपाध्याय कुल गणनी निश्राये बिचरे ते आराधक ते तमें कोनी निश्राये विचरोछो ते लिखज्यो तथा श्रीभगवतीसूत्रे गाथा छे पढमो गीयत्थ विहारो, वीयोगीयत्थनीसीओ भणिओ, इत्तो तइय विहारो, नाणुन्नाओ जिणवरेहिं २ एहनो अर्थ गीतार्थ होय ते पोते विहार करे अथवा गीतार्थनी निश्राये विहार करवो एहथी तीजा विहारनी अरिहंते आज्ञा दीधी नथी, ते माटे तुमे किस्या गीतार्थनी निश्राये विहार करोछो तथा योग उपाधान वहीने सिद्धांत भणे तेपण श्रावक आचा
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