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मयचक्र
सार मूळ
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प्रशस्ति
श्रीजिनागमने विषे १ द्रव्यानुयोग २ चरणकरणानुयोग ३ गणितानुयोग ४ धर्मकथानुयोग ए चार अनुयोग कह्या छे तेमां छ द्रव्य अने नव तत्व तेना गुण पर्याय स्वभाव परिणमनने जाणवुं ते द्रव्यानुयोग एवं पंचास्तिकायनुं स्वरूपकथनरूप छे ते पंचास्तिकायमध्ये एक आत्मा नामे अस्तिकाय द्रव्य छे ते आत्मा अनंता छे तेना मूल वे भेद छे तेमां एक | सिद्ध स्वस्वरूप निष्पन्न सर्वकर्मावरणदोषरहित संपूर्णकेवलज्ञान केवलदर्शनादिगुणप्रकटरूप, अखंड, अमल, अव्याबाधानंदमयी, लोकने अंते विराजमान, स्वरूपभोगी ते सिद्धजीव कहियें. ते सिद्धता सर्व आत्मानो मूल धर्म छे, ते सिद्धतानी | ईहा करवाने सिद्ध भगवंतनो यथार्थसिद्धपणो ओलखीने निष्पन्न सिद्धनो बहुमान करवो अने पोते पोतानी भूले अशुद्ध चेतनपणे परिणमतां बांध्यां जे ज्ञानावर्णादिकर्म ते टालीने पोतानी संपूर्ण सिद्धतानी रुचि करवी एहीज हितशिक्षा .
वली बीजो भेद संसारिजीवोनो छे ते जेणे आत्मप्रदेशें स्वकर्त्तापणे कर्मपुद्गलने ग्रह्या जेने कर्मपुद्गलनो लोलीभाव छे ते मिथ्यात्व गुणठाणाथी मांडीने अयोगी केवली गुणठाणाना चरमसमयपर्यंत सर्व संसारीजीव कहियें तेना वली वे भेदछे, एक अयोगी, बीजा सयोगी. ते सयोगीना वे भेद, एक सयोगीकेवली बीजा सयोगी छद्मस्थ. छद्मस्थना वे भेद एक अमोही बीजा समोही. समोहीना वे भेद छे एक अनुदितमोही बीजा उदितमोही. उदितमोहीना वे भेद एक सूक्ष्म| मोही बीजा बादरमोही. बादरमोहीना बे भेद एक श्रेणिवंत बीजा श्रेणिरहित. श्रेणिरहितना वे भेद एक संयमी विरति बीजा अविरति, अविरतिना वली वे भेद एक समकीति बीजा मिथ्यात्वी. मिथ्यात्वीना वे भेद एक ग्रंथिभेदी बीजा ग्रंथि -
बालाव
बोधसहित
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