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नरगइपणिंदितसभव सन्निअहक्खायखइअसम्मत्ते । मुक्खोणाहारकेवल दंसणनाणेनसेसेसु ॥ ४६॥
(नरगइ) मनुष्यगतिसें १ (पणिंदि) पंचेन्द्रिजातिसें २ (तस ) त्रसकायसें ३ (भव) भव्यपणसें ४ (सन्नि) संनीपंचेन्द्रिसें ५ (अहक्खायं ) यथाख्यातचारित्रसें ६ (खइअसम्मत्ते) क्षायकसम्यक्त्वसें ७ (मुक्खो) मोक्ष जाते हैं और (णाहार ) अणहारीक पदसें ८ (केवलदसण) केवल दर्शनसें ९ (नाणे) और केवलज्ञानसें इन दश मार्गणा द्वारसें जीवों मोक्ष जाते है १० (नसेसेसु) परन्तु शेष ५२ मार्गणाओंसें मोक्ष नही जाते ॥ ४६॥ इति प्रथमद्वार ॥
दवपमाणेसिद्धाणं जीवदवाणिहुंतिणंताणि । लोगस्सअसंखिज्जे भागेइक्कोयसवेवि ॥ ४७॥ । (दवपमाणेसिद्धाणं) सिद्धोके द्रव्यकाप्रमाण (जीवदवाणिहुतिणताणि) सिद्धोंमें जीवद्रव्य' अनंता है ॥ इति दुसरा द्वार २ (लोगस्सअसंखिजेभागे) चौदह राजलोकके असंख्यातमे भागमे (इक्वोय) एक सिद्ध और (सबेवि) सब सिद्ध रहते है ॥ इति तीसरा द्वार ३ ॥४७॥ [सणाअहिआकालो इगसिद्धपडुच्चसाइओणंतो। पडिवायाभावाओ सिद्धाणंअंतरंनस्थि ॥४८॥
(फूसणा) स्पर्शना सिद्ध जीवोंकी (अहिआ) अधिक है यह चौथा द्वार ४ (कालो) काल (इगसिद्धपडुच्चसाइ ओर्णतो) एक सिद्ध आश्रित सादि अनन्त स्थिति है और अनेक सिद्ध आश्रित अनादि अनन्त स्थिति है। इति
जीववि.