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त्तागवेषतां तथा निश्चयगुरु ते पण आपणो आत्माज तत्त्वरमणी अने निश्चयधर्म ते आपणा जीवनो स्वभावज छे एवी ४ सद्दहणा ते मोक्षनुं कारण छे केमके जीव स्वरूप ओलख्या विना कर्मखपे नहीं एवी शुद्ध सद्दहणा ते निश्चयसमकित. । ___ हवे ज्ञान- स्वरूप कहे छे ते ज्ञानना वे भेद छे. एक व्यवहारज्ञान, बीजुं निश्चयज्ञान, तेमां जे अन्यमतिनां सर्वशास्त्र जाणवां. अथवा जैनागममध्ये कह्या जे एकगणितानुयोग ते क्षेत्रमान, बीजो चरणकरणानुयोग ते क्रियाविधि, बीजो धर्मकथानुं योग ए त्रण अनुयोगर्नु जाणवापणुं ते सर्वव्यवहारज्ञान छे अथवा अन्तरउपयोगविना जे सूत्रना
अर्थकरवा ते पण व्यवहारज्ञान कहिये. | हवे निश्चयज्ञान ते छे द्रव्य तथा तेनागुण अने पर्याय सर्वने जाणे तेमां पांच अजीवद्रव्य छे ते हेय-केतां छांडवा
योग्य जाणी छांडवा अने एक जीवद्रव्य ते निश्चयेंकरी सिद्धसमान मोक्षमयी मोक्षनोजाणनार मोक्षनुं कारण मोक्षनो
जावावालो मोक्षमांजरहे छे एहवो आपणो जीव अनंतगुणी अरूपी छे तेनेज ध्यावे ते निश्चयज्ञानकहियें. ol हवे एकधर्मास्तिकाय, बीजो अधर्मास्तिकाय, त्रीजो आकाशास्तिकाय, चोथो पुद्गलास्तिकाय, पांचमो जीवास्तिकाय,
अने छट्ठो काल ए छे द्रव्य शाश्वता छे तेनुं ज्ञान कहे छे. ए छेद्रव्यमध्ये पांच अजीव द्रव्य छे अने एक जीवद्रव्य ते चेतनालक्षणवंत छे उपादेय छे. __ हवे ए छद्रव्यना गुण कहे छे पहेलो धर्मास्तिकाय तेना चार गुण एक अरूपी बीजो अचेतन त्रीजो अक्रिय चोथो गतिसहायगुण, अने बीजो अधर्मास्तिकाय तेना पण चारगुण छे एक अरूपी बीजो अचेतन त्रीजो अक्रिय चोथो स्थिति
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