________________
ACCOUCAUCAMKAACANC4
सम्यक्त्वकी प्राप्ति होनी बहोत दुर्लभ है ऐसा विचारना वह बोधिदुर्लभभावना (धम्मस्स) बारहवी धर्मभावना इसमें भव्य ऐसा विचारे कि संसारसमुद्रसें पार होने के लिये जो जिनेस्वरमहाराजने कहा हुआ धर्म है उसका (साहगाअरिहा) साधक कहनेवाला अरिहंतादि मिलना दुर्लभ है (एआओ) इस प्रकारसे कही हुई (भावणाओ) भावनाओ (भावेअवा) बिचारनी (पयत्तेणं) प्रयत्नसें ॥३१॥ | सामाइअत्थपढमं छेओवट्ठावणंभवेबीअं । परिहारविसुद्धिणं सुहुमंतहसंपरायंच ॥ ३२ ॥
(सामाइ) सामायिक चारित्रद्रव्य और भावसें (अत्थ) इहां (पढम) पहिला है १ (छेओवट्ठावणंभवेबीअं) छेदोपस्थापनीयचारित्र दुसरा है २ (परिहारविसुद्धीणं) परिहारविशुद्धि चारित्र ३ (सुहुमंतहसंपरायंच) फिर चोथा सूक्ष्मसंपराय चारित्र ४ यह चारित्र दशमा गुणस्थानवाले मुनिको होता है ॥ ३२॥ तत्तोअअहरुखायं खायंसबम्मिजीवलोगम्मि । जंचरिऊणसुविहिआ वच्चंतिअयरामरंठाणं ॥३३॥ | (तत्तोअअहख्खायं ) उस पीछे पाँचमा यथाख्यात चारित्र (खायंसबम्मिजीवलोगम्मि) यह चारित्र सब जीवलोगों प्रसिद्ध है (जंचरिऊणसुविहिआ) जिसका सेवन करनेसें सुविहित साधु लोगों (वच्चंतिअयरामरंठाणं) अजरामरस्थान कको पाते है ॥ ३३ ॥ इति संवर तत्त्वम् ॥ ३३ ॥ अणसणमूणोअरिआ वित्तीसंखेवणंरसच्चाओ। कायकिलेसोसलीण-यायवज्झोयतवोहोइ ॥ ३४ ॥
RECRUSSCRACCORDC