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नवतत्त्वसार्थ
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भाषाटी
कासहित.
॥२८॥
PI (अणसणं) सर्वथा आहारका त्याग उपवासादिक सो अनशन तप १ (ऊणोअरिआ) आहार कमकरना सो|
ऊनोदरी तप २ (वित्तीसंखेवणं) वृत्तिका संक्षेप करना सो वृत्तिसंक्षेप तप ३ (रसच्चाओ) विगयका त्याग करना सो रसत्याग तप ४ (कायकिलेसो) लोचादि जो कष्ट करना वह कायक्लेश तप ५ (संलीणयाय) सब इन्द्रियोंका दमन करना |वह संलीनता तप (बज्जोयतवोहोइ) इस प्रकारसें बाह्य तपके छ भेद कहै ॥ ३४॥
पायच्छित्तंविणओ वेयावच्चंतहेवसज्झाओ । झाणंउस्सग्गोविअ अभिंतरओतवोहोइ ॥ ३५॥
(पायच्छित्तं) जो शुद्ध मनसें गुरु महाराजके पास आलोयणा लेना सो प्रायश्चित तप १(विणओ) विनय तप २ (वेया|वच्चं) वैयावृत्य तप ३ (तहेवसज्झाओ)तेसेही स्वाध्याय तप ४ (झाणं) ध्यान तप ध्यानका स्वरूप गुरुगमसें धारना ५ (उस्सग्गोविअ) और कायोत्सर्ग तप (काउसग्ग) ६ (अभितरओतवोहोइ) ऐसे छ प्रकारसें अभ्यन्तर तप कहा ॥ ३५॥
बारसविहंतवोनिजराय बंधोचउविगप्पो । पयईठिइअणुभागो पएसमेएहिनायवो ॥ ३६॥ (बारसविहं) ऐसे सब मिलकर बारह भेदे (तवो) तप (निज्झराय) निर्जराके लिये है। इति निर्जरातत्त्वम् (बंधो) अब बंधतत्त्व (चउविगप्पोअ) चार भेद है (पयई) १ प्रकृतिबन्ध (ठिइ) स्थितिबन्ध (अणुभागो)३ अनुभागबन्ध (पएस) और प्रदेशबन्ध ४ (भेएहिं ) ऐसे चार भेदसें (नायबो) जानना ॥ ३६॥
पयइसहावोवुत्तो ठिईकालावहारणं । अणुभागोरसोनेओ पएसोदलसंचओ ॥ ३७॥
॥२८॥