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है [३] जिनदर्शन
तरण-तारण तीर्थंकर परमात्मा-जिनेश्वर भगवान की स्थापना निक्षेप रूप जिनमूत्ति-जिनप्रतिमा-जिनबिम्ब के दर्शन एवं पूजन का एक मात्र ध्येय श्री तीर्थंकर भगवन्त के स्वरूप को प्राप्त करना होता है। इसलिए साक्षात् तीर्थंकर-जिनेश्वर भगवन्त के अभाव में जिनमूत्ति ही परम आधारभूत श्रेयस्कर है। "इस पाँचवें पारे में प्रभु की मूत्ति-प्रतिमा मेरे लिए तो साक्षात् प्रभु ही है। विश्व के जीवों पर असीम उपकार करने वाली है।" इत्यादि शुभ भावनाओं से अपने मन को सुवासित करके जिनदर्शनार्थ एवं जिनपूजनार्थ अहनिश जिनमूत्ति-जिनप्रतिमाजी के पास जाना चाहिए। तथा दर्शन-पूजन का लाभ लेना ही चाहिए।
जिनदर्शन से क्या-क्या लाभ होता है ? शास्त्रकारों ने कहा है किवर्शनं देवदेवस्य, दर्शनं पापनाशनम् ।। दर्शनं स्वर्गसोपानं, दर्शनं मोक्षसाधनम् ॥ १॥