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परिशिष्ट-२
। त्रिकाल जिनपूजा-पूजन का समय Lwwwwwwwwwwwwwwwwwwwd
जैनशास्त्रों में स्थान-स्थान पर जिनदर्शन एवं जिनपूजा-पूजन का विधिपूर्वक विधान है।
प्रातःकाल की पूजा, मध्याह्न काल की पूजा एवं सन्ध्याकाल की पूजाएँ सुप्रसिद्ध हैं।
(१) प्रातःकाल की प्रभुपूजा-प्रातःकाल की पूजा के लिए श्रावक रात्रि के चौथे प्रहर में अर्थात् ब्राह्ममुहूर्त में' सूर्योदय से ४ घटिका पूर्व अर्थात् १।। घंटे पूर्व जाग्रत होकर पंचपरमेष्ठी का स्मरण करते हुए शयन का त्याग कर देता है।
एक सामायिक और राईप्रतिक्रमण पूर्ण करने के पश्चाद् अपने हाथ, पैर और मुख प्रादि साफ करता है । बाद में योग्य शुद्ध वस्त्र धारण करके जब वह जिनमन्दिर
१. सूर्य का उदय होने में जब चार घड़ी यानी ६६ मिनट बाकी रहें
तब उस समय को 'ब्राह्ममुहूर्त' कहते हैं ।