Book Title: Jinmandiradi Lekh Sangraha
Author(s): Sushilsuri, Ravichandravijay
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 171
________________ ठहराया था, वह मुकाम धर्माराधना में ही उपयोग करने के लिये श्री पारसमलजी ने जाहिर किया । तदुपरान्त जीर्ण उपाश्रय का जीर्णोद्धार कराने के लिये भी जनरल टीप हुई । उसमें भी श्री पारसमलजी ने स्थानकवासी होते हुए भी अपनी दुकान भेंट देने की जाहेरात की । * मागशर सुद ६ बुधवार दिनांक १५-१२-८८ के दिन सुबह में परम पूज्य आचार्य म. सा. की पावन निश्रा में मूलनायक श्री कुन्थुनाथ भगवान तथा यक्षयक्षिणी की, ऊपर के भाग में संभवनाथ भगवान की एवं ध्वज - दण्ड - कलशारोपण की महामंगलकारी प्रतिष्ठा शुभ मुहूर्त्त में हुई । उसी दिन से बहशान्तिस्नात्र, स्वामीवात्सल्य तथा छत्तीस कौम में घर दीठ मोदक की प्रभावना देने का कार्य प्रतिदिन चलता । महोत्सव का लाभ लेने वाले श्रीमान् चुन्नीलालजी जबरचन्द पारसमल पीपाड़ वालों की ओर से हुआ । सम्मान समारोह में, इस मन्दिर का सभी कार्य करने के लिये पूज्यपाद आचार्य गुरु म. श्री की प्रेरणा से कार्यकर्त्तानों ने साथीन पीपाड़ की एक समिति का निर्माण किया । ( 5 )

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