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( १०६ ) बाद में चैत्यवन्दन एवं पच्चक्खाण करके धार्मिक उपाश्रय में जाकर देवसि प्रतिक्रमण करते हैं। यह सन्ध्याकालीन पूजा कही जाती है ।
प्रत्येक श्रावक-श्राविका को प्रतिदिन प्रातः-मध्याह्न, सायंकालीन प्रभु की पूजा अवश्य ही करनी चाहिए । प्रत्येक साधु-साध्वीजी को भी प्रतिदिन जिनमन्दिर में जाकर वीतरागदेव के दर्शन-वन्दन-स्तुति-स्तवन-चैत्यवन्दन इत्यादिरूप भावपूजा अवश्य ही करनी चाहिए । ज्येष्ठ [वैशाख] वद-७
न्याति नोहरा बुधवार
पीपाड़ दिनाङ्क
राजस्थान १२-५-१६६३ [प्रतिष्ठा दिन]