________________
( ३१ ) (२) मीराबाई का प्रसंग-भक्ति और भजन में मग्नलीन ऐसी मीराबाई भी प्रेमदीवानी थी। एक दिन मीरां ने शिशु अवस्था में-बचपन में अपनी माता को वर के विषय में पूछा। तब माताजी ने श्रीकृष्णजी को श्रेष्ठ वर रूप में बताया। मीरां ने उसो समय अखण्ड सौभाग्य प्राप्त रहे' ऐसे श्रेष्ठवर श्रीकृष्णजी को स्वीकारा। उसी में यह ऐसी मस्त हो गई कि, उसे राज्य के सुख भी तुच्छ लगने लगे। की हुई भक्ति और भजन के प्रभाव से राणाजी द्वारा भेजा हुआ विष यानी जहर का प्याला अमृत हो गया तथा सर्प पुष्पमाला बन गया।
मीरां बोल रही है किजनम-जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो ।
पायोजी मैंने रामरतन धन पायो । कैसा धन पाया ? तो कह रही है कि... खरचे न खटे वाको चोर न लूटे ; दिन-दिन बढ़त सवायो , पायोजी मैंने रामरतन धन पायो ।
(३) श्रीकृष्णजी ने विदुर की भाजी और सुदामा के तन्दुल आरोग कर दोनों को धन्य कर दिया ।