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हथेलियाँ चिपका कर नहीं रखनी चाहिए । इस तरह रखे हुए दोनों हाथ मोती की सीप की आकार के बनते हैं । मिली हुई दोनों हथेलियों को ललाट पर रखना । कितनेक प्राचार्य यह भी कहते हैं कि - " दोनों हाथ कपालेललाटे न रखना, किन्तु भाल- कपाल ललाट के सम्मुख ऊँचा रखना ।" यह मुक्ताशुक्तिमुद्रा कहलाती है ।
"योगमुद्रा, जिनमुद्रा और मुक्ताशुक्ति मुद्रा' इन तीन मुद्रात्रों का उपयोग नीचे प्रमाणे होता है• पंचाङ्ग प्रणिपात और और स्तवनपाठ योगमुद्रा में
करना ।
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चैत्यवन्दन करते समय चैत्यवन्दन और नमुत्थुणं योगमुद्रा में होता है । उसमें जावंति चेइग्राइं और जावंत के वि साहु तथा जयवीयराय यह जो योगमुद्रा चालू होती है, तो भी दोनों हाथ ललाट पर ऊँचे रखकर मुक्ताशुक्तिमुद्रा से ये तीनों प्रणिधान करते हैं ।
जयवीयराय
बीच में स्तवन योगमुद्रा में होता है । के बाद अरिहंत चेप्राणं, कायोत्सर्ग, थोय इत्यादि खड़े होकर जिनमुद्रा में करते हैं । तथा चैत्यवन्दन या