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ये पाँचों अभिगम श्रीजिनेश्वर भगवान के पास जाते समय करने के हैं। ये पाँच अभिगम अल्प ऋद्धिवन्त श्रावक को उद्देश्य कर कहे गये हैं ।
अपने खाने-पीने की और सूघने को वस्तुएँ अचित्त हों, तो भी श्रीजिनेश्वर भगवान की दृष्टि न पड़े, अतः चैत्य-मन्दिरजी के बाहर छोड़कर ही प्रवेश करना। जो दृष्टिगत हुई हों तो वे वस्तुएँ अपने उपयोग में न लेना, ऐसा आचरण भी प्रभुजी के लोकोत्तर विनय रूप है ।
खेस रखने की विधि, अंगपूजा तथा उत्कृष्ट चैत्यवन्दन करने वाले के लिए है, तो भी अन्य पुरुषों को भी पगड़ी
और खेस युक्त ही प्रभुजी के पास जाना चाहिए । नहीं तो प्रभुजी का अविनय गिना जाता है। पूजा के समय पुरुष को दो वस्त्र और स्त्री को जघन्य से तीन वस्त्र रखने चाहिए। अंगपूजा तथा उत्कृष्ट चैत्यवन्दन के समय खेस अवश्य रखना चाहिए।
स्त्रियों को अंजलि शिर-मस्तक नमाना चाहिए, किन्तु अंजलि के साथ हाथ ऊँचे कर शिर-मस्तक पर नहीं लगाने चाहिए। स्त्री वर्ग वस्त्रावृत्त अंग-शरीर वाली ही होनी चाहिए।