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अन्य रोति से भी पाँच अभिगम इस प्रकार हैं
* श्रीजिनेश्वर भगवान के दर्शन करने की भावना वाले राजा प्रादि को महद्धिक होते हुए भी अपने राजचिह्न बाहर छोड़कर ही जिनचैत्य-जिनमन्दिर में प्रवेश करना चाहिए। क्योंकि तीन भुवन के सम्राट् देवाधिदेव श्रीजिनेश्वर भगवान के आगे अपना राजापना दर्शाना अत्यन्त अविनय है।
प्रभु के पास तो सेवक भाव ही दर्शाने का होता है । प्रभु का सेवक बनना भी परमभाग्य से ही होता है ।
मुकुट यानी शिरोवेष्टन पर राजचिह्न तरीके जो कलगीवाला ताज पहनाते हैं वह जानना, किन्तु शिरोवेष्टन समझना नहीं। कारण कि उघाड़े मस्तक प्रभु के पास नहीं जाना चाहिए।
महापाडम्बरपूर्वक परिवारयुक्त, प्रभु के दर्शन-वन्दनादि करने को जाना चाहिए ।
इससे अनेक जीवों के मन में प्रभु के प्रति भक्तिराग जागृत होकर उन्हें सम्यक्त्वादि गुणों का लाभ होता है ।
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