________________
( ६२ )
परिणाम यह हुआ है कि अभी आप इस मूर्ति के पास खड़े रहने में भी असमर्थ हो रहे हैं। जैसी यह मूत्ति है वैसी मैं भी हाड़-मांस की मूत्ति के सिवा और कुछ नहीं हूँ। मेरे साथ विवाह करने के लिए अर्थात् मुझे पाने के लिए आप सब पागल हो रहे हैं। उसमें तो प्रतिदिन कितने ग्रास डाले जाते हैं, तब उससे आखिर जो गन्ध आएगी, उससे आपकी क्या दशा होगी, क्या यह भी सोचते हैं ?
मल्लिराजकुमारी के उद्बोधन से और मूत्ति के साक्षात्कार से विवाह करने के लिए लग्न-मण्डप में पाये हुए छहों राजकुमार संसार से विरक्त हो गये। उनके हृदय में सच्चे ज्ञानरूपी सूर्य का प्रकाश हो गया। इस दृष्टान्त का सार यह है कि
यदि कृत्रिम मूति से असली वस्तु का विराग प्राप्त हो सकता है तो वीतराग जिनेश्वर भगवान की मूत्तियों से हम भो सच्चा विराग अवश्य प्राप्त कर सकते हैं । इसमें कोई सन्देह नहीं।
(२) इस अवसर्पिणी काल में अन्तिम चौबीसवें तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर परमात्मा हुए। एक समय मगधदेश के सम्राट् श्रेणिक महाराजा ने नरक के