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( ७३ ) बनाकर और जिनमूर्ति स्थापित कर पाता तो मैं खुश होती और मेरा मन मयूर नाच उठता।"
धन्य हो ऐसी धर्मी माता को। अपने पुत्र को आत्मिक विकास और आत्मोद्धार के सम्बन्ध में कैसी अनुपम प्रेरणा दी।
उसी समय सम्प्रति ने कहा-"पूज्य मातृश्री ! आपकी अनुपम प्रेरणा और आपके शुभाशीर्वाद से 'मोह मेरी मैया' आपकी इस शुभेच्छा को मैं अवश्यमेव पूरी करूगा।"
पश्चात् सम्प्रति ने राजज्योतिषी द्वारा अपना प्रायुष्य प्रायः १०० वर्ष का यानी ३६ हजार दिन का जानकर, उसी दिन से अपने मन में नूतन एक जिनमन्दिर-निर्माण के सम्बन्ध में एक महान् संकल्प किया।
प्रतिदिन नूतन एक जिनमन्दिर के शिलान्यास यानी शिलास्थापन के शुभ समाचार आने के बाद माता के पास जाकर माता के चरणों में अपना सिर झुकाता। उस समय माता अपने प्रिय पुत्र के कपाल-ललाट पर कुमकुम का तिलक करके शुभाशीर्वाद देती। इसके पश्चात् ही सम्प्रति सम्राट् दातुन करता था । कैसा दृढ़ संकल्प ।