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( ६६ ) ऐसे अनेक उदाहरण जिनमूत्ति-जिनप्रतिमा दर्शनवन्दन एवं पूजन के सम्बन्ध में विद्यमान जैनशास्त्रों में आज भी मिलते हैं।
महाभारत में भी एकलव्य भील का उदाहरण आता है। कहा है कि
जिस समय विद्यागुरु श्री द्रोणाचार्य के पास युधिष्ठिर आदि पाण्डव और दुर्योधन आदि कौरव विद्याभ्यास कर रहे थे; उस समय एकलव्य नामक एक भील भी श्रीद्रोणाचार्य से शस्त्रविद्या सीखने को आया। लेकिन श्रीद्रोणाचार्य ने एकलव्य को सिखाने से इन्कार कर दिया । तो भी एकलव्य ने श्रीद्रोणाचार्य की मूत्ति बनाकर अति प्रेम से उस मूत्ति में प्राण-प्रतिष्ठा की और अच्छी तरह से उस मूत्ति के ही द्वारा शस्त्रविद्या सीखी। इस उदाहरण से मूत्ति और मूर्तिपूजा की असलियत पर मूर्तिपूजकों की भाँति मूर्तिपूजन न करने वालों को भी अवश्य विश्वास करके अहर्निश प्राणप्रतिष्ठित प्रभुमूर्ति के दर्शन, वन्दन एवं उसकी पूजा-पूजन का लाभ अवश्य ही लेना चाहिए और मिले हुए मनुष्य भव को सफल करना चाहिए। ___'मूत्ति की सिद्धि एवं मूतिपूजा की प्राचीनता' शीर्षक मेरी लिखी पुस्तिका में शास्त्रीय प्रमाणों और युक्तियों