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निमित्त बनाकर सम्यग्दर्शनादि धर्म की प्राप्ति अपनी प्रात्मा में से ही प्रगट करने की है। जैसे साक्षात् तीर्थंकर भगवंत की विद्यमान अवस्था में उनकी सेवाभक्ति द्वारा सम्यग्दर्शनादि गुणों को आवत करने वाले ज्ञानावरणीयादि कर्म-प्रावरणों को दूर करके अपने प्रात्मगुणों को प्रगट कर सकते हैं, वैसे ही श्री तीर्थंकर भगवन्त की अविद्यमान अवस्था में उनकी मूत्ति-प्रतिमा की सेवा-भक्ति द्वारा भी सम्यग्दर्शनादि गुणों को प्राच्छादित करने वाले ज्ञानावरणीयादि कर्मों को हटाकर आत्मगुणों को अवश्य ही प्रगट कर सकते हैं और अन्त में मोक्ष के शाश्वत सुख को पा सकते हैं।
महासुद-१५ सोमवार दिनांक-२०-२-८६ अम्बाजी नगर (फालना)