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(२) कीर्तन-नवधा भक्ति पैकी यह भक्ति का दूसरा प्रकार है। परमेश्वर-परमात्मा के दिव्य गुणों का भावपूर्वक मधुर स्वर से अन्य भी श्रवण कर सकें उस माफिक, उच्चारण करना, उसका नाम है कीर्तन ।
श्रवण द्वारा प्रभु के प्रति और गुरु के प्रति जिसको बहुमान हुआ ऐसे भक्त को वाणी द्वारा व्यक्त करने का भावोल्लास पाता है, उससे वह कीर्तन करने के लिए प्रेरित होता है।
अपने सांसारिक कार्यों से समय निकाल कर प्रभु की स्तुति-स्तवन, गीत-गान, तथा सज्झाय एवं भावना इत्यादि श्रवण करने से अपना ध्यान भगवान में मग्न-तल्लीन हो जाता है। तथा कीर्तन से सारा संसार भूल जाता है।
प्रभु के बाह्य और अभ्यन्तर गुणों का स्तवन-वर्णन कीर्तन में प्राता है। जैसे अन्य दर्शनों के कीर्तनकार प्रसिद्ध नरसिंह मेहता, संत तुकाराम, नर्मद कवि तथा मीराबाई आदि भक्तजनों के कीर्तन में भाग लेने वाले तल्लीन हो जाते हैं। जैनदर्शन में भी श्रीपाल-मयणा की, रावण-मन्दोदरी की, नागकेतु की तथा पेथड़कुमार