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मुंह यानी मुख से बोलने के प्रकार हैं, वैसे प्रभु का स्मरण, चिन्तन और ध्यान स्मरण शक्ति के प्रकार हैं।
सभी ज्ञानी महापुरुषों ने भाव से प्रभु का नाम, जप और स्मरण-चिन्तन इत्यादि अहर्निश करने को कहा ही है
घड़ी-घड़ी पल-पल सदा, प्रभु स्मरण को चाव । नरभव सफलो जो करे, दान शील तप भाव ॥
जिसका नित्य स्मरण-चिन्तन होता है तथा उसी का जाप जपा जाता है तो उसके साथ प्रेम-स्नेह बँधता ही है। महाज्ञानी चौदहपूर्वधारी आदि महापुरुष भी प्रभु का नाम-स्मरण करते हैं, इतना ही नहीं किन्तु अन्तिम समय में भी देवाधिदेव वीतराग विभु का नाम स्मरण कराने का अवश्य प्रबन्ध करते हैं जिससे स्वयं का सम्यक् समाधिमरण हो। इसलिए प्रभु का नाम-स्मरण चाहते ही हैं। प्रभु के नाम से ही श्रवण, कीर्तन और स्मरण ये तीनों अक्षर के पालम्बन से प्राराधना कराते हैं।
(४) वन्दन-नवधा भक्ति पैकी यह भक्ति का चौथा प्रकार है । वन्दन कहो, नमस्कार कहो या प्रणाम कहो, सभी समान अर्थ वाले पर्यायवाचक शब्द हैं।