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(४) श्री नलराजा की रानी सती दमयन्ती ने श्री जिनेश्वर भगवान की पूजा की थी, जिससे उसको सुख की प्राप्ति हुई।
(५) पाण्डवों की पत्नी सती द्रौपदी ने भी जिनपूजा करके सम्यक्त्व-समकित को पुष्ट किया था। ऐसे अनेक उदाहरण प्रागम-शास्त्रों में मिलते हैं।
इसीलिए तो कहा है कि"जिनप्रतिमा जिण सारखी जाणो, न करो शङ्का कोई।"
इस प्रकार के उद्देश्य को ध्यान में रखकर अहर्निश अवश्य ही जिनेश्वर भगवान की त्रिकाल पूजा धर्मीजीवोंधर्मात्माओं को करनी चाहिए । जिनपूजा का फल
प्रागम-शास्त्रों में स्थान-स्थान पर देवाधिदेव श्री जिनेश्वर भगवान की पूजा करने का विधान है। वह तीन प्रकार की है। प्रातःकाल की पूजा, मध्याह्न काल की पूजा और सायंकाल की पूजा। (१) प्रातःकाल की पूजा :
प्रातःकाल की पूजा के लिए श्रावक एवं श्राविका सूर्योदय से डेढ़ घंटे पूर्व उठकर एक सामायिक और राई