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और सुगन्ध देता हुआ धूप सम्पूर्णपने राख नहीं हो जाता तब तक मैं घर नहीं जाऊंगा, यहीं खड़ा रहूंगा । वहाँ पर ऐसा चमत्कार हुआ कि एक भयंकर विषधर - सर्प वहाँ आ गया उसको देखता हुआ श्रीधर भी निर्भयपने वहाँ पर स्थिर खड़ा ही रहा ।
उस समय क्रोधायमान विषधर - सर्प श्रीधर के पैर पर डसने के लिए आगे बढ़ा तभी वहाँ एक आश्चर्यकारी चमत्कार हुआ । तत्काल शासनदेवता ने उस विषधरसर्प को खूब दूर फेंक दिया और श्रीधर के हाथ में एक दिव्यरत्न रख दिया कालान्तर में उस दिव्यरत्न के प्रभाव से श्रीधर श्रीमन्त करोड़पति श्रेष्ठी हुआ ।
एक दिन श्रीधर श्रेष्ठी ने लोगों के मुख से सुना कि कामरूप नाम के यक्ष की पूजा करने से सर्ववांछित फल मिलता है, सभी अभीष्ट प्राप्त होता है । यह सुनकर श्रेष्ठी श्रीधर भी लोभ के वश होकर उस कामरूप यक्ष की पूजा करने लगा तथा अन्य देव - देवियों की भी पूजा और प्रार्थना करने लगा ।
एक दिन श्रेष्ठी श्रीधर के घर में चोरों ने आकर सब धन लूट लिया । इससे श्रीधर धनहीन बन गया ।