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[५] जिनभक्ति
जिनेभक्तिजिनेभक्ति - जिनेभक्तिदिने दिने । सदामेऽस्तु सदामेऽस्तु सदामेऽस्तु भवे भवे ॥१॥
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शास्त्र में शास्त्रकार महर्षियों ने महापुरुषों ने मोक्ष की साधना के लिए भक्ति प्रादि तीन योग बतलाये हैं, उनके नाम हैं- भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग | इन तीन योगों की साधना रत्नत्रयी की सम्यग् आराधना स्वरूप है । उनमें भक्तियोग की प्रधानता मुख्य रूप में है । कारण कि, ज्ञान और चारित्र की सफलता का श्राधार भी सम्यग्दर्शन ही है ।
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विनय का ही एक प्रकार भक्ति है । भक्ति से मुक्ति सुलभ है । इसलिए कहा है कि- 'भक्ति बिना नहि मुक्ति रे० ' जो व्यक्ति सुदेव और सुगुरु के प्रति भक्ति- बहुमान से समर्पित हो जाता है, उसके लिए तो मुक्ति हाथ में श्रर्थात् हथेली पर है । कर्म के ताप से संतप्त हुई आत्मा को शान्ति के लिए प्रभु की अनुपम भक्ति तीर्थों के जलस्नान से अर्थात् शत्रु जय गंगा आदि के जलस्नान से भी अधिक श्रेष्ठ बढ़कर है ।