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( २३ ) प्रतिक्रमण करें। पश्चाद् हाथ, पैर तथा मुख इत्यादि साफ करके और शुद्ध वस्त्र धारण करके जिनमन्दिर जाने के लिए जब पैर उठावें तब सूर्योदय हो जाना चाहिए । मार्ग में चलते हुए जयणा पूर्वक जीवों की रक्षा करते हुए तथा यथास्थान दस त्रिकों का भी पालन करते हुए जिनमन्दिर में प्रवेश करें।
देवाधिदेव वीतराग श्रीजिनेश्वर भगवान की तीन प्रदक्षिणा देवें और भाववाही स्तुति करें। बाद में उत्तम प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से प्रभु की वासक्षेप-पूजा करें। उसके पश्चाद् धूपपूजा तथा दीपकपूजा करके चैत्यवन्दन करें। तत्पश्चाद् यथाशक्ति नौकारसी आदि का पच्चक्खाण ग्रहण करें।
यह प्रातःकाल की जिनपूजा कही जाती है । (२) मध्याह्न काल की पूजा : ___मध्याह्न काल में श्रावक एवं श्राविका भोजन करने के पूर्व जयणापूर्वक स्नान करके पूजा के लायक उचित वस्त्र पहनकर प्रष्ट प्रकार के पूजा के द्रव्य ग्रहण करके जिनमन्दिर में आते हैं तथा प्रभु की भक्ति-बहुमानपूर्वक द्रव्यपूजा और भावपूजा करते हैं। यह मध्याह्नकालीन पूजा कही जाती है।