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अपनी सद्भावनाओं को सतेज रखने के लिए निमित्त भूत हैं। इन जिनमन्दिरों - जिनचैत्यों में प्राणप्रतिष्ठित की हुई श्रीजिनेश्वर देवों की मनोहर भव्य मूत्तियों प्रतिमानों के दर्शन, वन्दन एवं पूजन से आत्मा अनन्त शान्ति का अनुभव करती है ।
आज भी इस अवसर्पिणी के पंचम श्रारे में सैकड़ोंहजारों-लाखों-करोड़ों ग्रात्माएँ अपने हृदय में विविध प्रकार से अनुपम श्रद्धा रखकर देवाधिदेव श्रीजिनेश्वर भगवन्तों की मूर्तियों प्रतिमाओं को पूजती हैं । प्रभु के नौ अंग की पूजा करती हैं । कोई श्रात्मा जिनमूर्ति प्रतिमा के दर्शन से तृप्ति पाती है, कोई आत्मा गीतनाद और नृत्यादिक से, प्रभु की अनुपम भक्ति करके अनंत सुख का अनुभव करती है ।
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अंगपूजा, अग्रपूजा और भावपूजा इस प्रकार प्रभु की पूजा तीन प्रकार की है । इनमें प्रभु की मूर्ति पर पुष्पादिक चढ़ाने से अंगपूजा होती है । प्रभु के सम्मुख फल-नैवेद्य इत्यादि रखने से अग्रपूजा होती है | के आगे स्तुति - प्रार्थना, स्तवन इत्यादि करने से भावपूजा होती है ।
तथा प्रभु