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सुकून मिलता ही है, साथ ही साथ मानवता के कल्याण में भी हम सहयोगी बनते हैं। आप जिंदगी में दूसरों के काम आने की कोशिश करें। आप देखते हैं, वृक्ष फल स्वयं नहीं खाते और वे दूसरों के लिये उन्हें गिरा देते हैं। सरोवर दूसरों की प्यास बुझाने को सदा तत्पर रहते हैं।
___ हमारी महानता इसी में है कि हम दूसरों के काम आ सकें। आप अपने घर में ऐसा पेड़ लगाएँ जिसकी छाया पड़ौसी के घर तक जाए। पड़ौसी को अपने व्यवहार से सुकून दें। स्वयं की सुविधा, स्वयं की भलाई तथा खुद के विकास की संभावनाएँ तो सभी ढूंढते हैं लेकिन महान वे हैं जो औरों के लिए स्वयं को समर्पित कर देते हैं। हृदय में करुणा, मैत्री, प्रार्थना हो तथा जीव-जन्तुओं के प्रति भी दया-भाव हो। जीवन में कोई आपके लिए कितना भी बुरा क्यों न करे, लेकिन आप उसके प्रति उदारता रखें और उसकी विपत्ति में काम आएँ। अगर हमारे पास अधिक धन है तो उसे सेवाकार्य में खर्च करें। जीवन में ऐसे कुछ नेक कार्य करें कि ऊपर जायें तो ऊपर वाले के सामने हमारा चेहरा दिखाने लायक अवश्य हो।
एक दफा अकबर ने बीरबल से पूछा-'मेरी हथेली में बाल क्यों नहीं हैं?' अजीब सा प्रश्न था, लेकिन पूछा भी तो बीरबल से था। तुरंत उत्तर मिला, 'जहाँपनाह, आप अपने हाथों से निरंतर दान करते हैं, इसीलिए आपकी हथेलियों के बाल घिस गए हैं।' 'बात तो ठीक है, लेकिन बीरबल जो देते नहीं हैं उनकी हथेलियों में भी बाल क्यों नहीं होते?', सम्राट ने अगला सवाल किया।, 'बादशाह। वे लोग लेते हैं इसलिए लेते-लेते उनके बाल घिस जाते हैं', बीरबल ने उत्तर दिया। अकबर ने कहा, 'यह भी ठीक है, लेकिन जो न देते हैं और न लेते हैं उनकी हथेलियों में बाल क्यों नहीं होते?' बीरबल ने जो जवाब दिया वह गंभीरता से ग्रहण करने लायक है। बीरबल ने कहा, 'जहाँपनाह । वे हाथ मलते रह जाते हैं इसलिए उनकी हथेलियों में बाल नहीं होते।'
हम भी कहीं हाथ मलते न रह जाएँ। प्रकृति हमें देती है, नदी हमें देती है, वृक्ष -जमीन और आकाश भी हमें देते हैं, फिर हम देने में कंजूसी क्यों करें! हम देने की भाषा सीखें, देने का पाठ पढ़ें। हमारे जीवन में देने के संस्कार है। हमारे पास जरूरत से ज्यादा वस्त्र हैं तो फटेहाल जिंदगी जीने वालों की सहायता करें। अगर आपके पास पचास साड़ियाँ हैं तो उनमें से पाँच साड़ियाँ झोंपड़-पट्टी में जाकर उन्हें दे दें, जिन महिलाओं के दो साड़ियाँ भी नहीं हैं। इससे हमारी संग्रहवृत्ति कम होगी और किसी गरीब महिला होगा। यह अपरिग्रह व्रत का जीवन्त आचरण होगा। हम अपने हृदय में करुणा लाएँ। औरों के जीवन की विपदाओं को हम कम करने की, ठीक करने की कोशिश करें। कोई आपका कितना भी अहित करे, पर आप उसका अहित न करें।
जो तोके कांटा बुवै, ताहि बोय तू फूल॥
तोको फूल को फूल है, वाको है त्रिशूल। पहले दिन आप अपने कार्य का पर्यवेक्षण करें। दूसरे दिन उन सभी कार्यों को दोहराएँ और संकल्प लें कि अच्छे काम पुनः करेंगे और बुरे-गलत कार्यों को छोड़ने का प्रयास करेंगे। श्रेष्ठ कार्यों से
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