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सम्पत्ति की, न ही आलीशान मकान, दुकान, फैक्ट्री और ऑफिस की जरूरत होती है। ये सब सुविधाएँ दे सकते हैं, शांति नहीं। शांति और जीवन की खुशियाँ कहीं और छिपी हुई हैं। जब हम जानना चाहते हैं कि सदाबहार प्रसन्न कैसे रहें तो एक बात निश्चित समझ लें कि प्रसन्नता औरों से नहीं बल्कि अपने चित्त की चेतना से ही उपार्जित की जाती है। आज तो आदमी की जेब में ऐसा सिक्का है जिसके एक ओर खशी और दसरी ओर नाखशी और नाउम्मीदी खदी हई है। व्यक्ति जब सिक्का निकालकर उसे देखता है तो उसे खशी नजर आती है और वह खश होता है और कभी वह जब सिक्के का दसरा भाग देखता है तो उसे नाखशी और नाउम्मीदी नजर आती हैं। वह दुःखी हो जाता है। अपनी जेब में ऐसा सदाबहार सिक्का रखो जिसके दोनों ओर खुशी ही खुदी हो। जब चित को देखो तो भी खशी और पट को देखो तब भी खशी। यह सिक्का सभी को जरूर रखना चाहिए। जब भी इसे देखो, तुम्हें शांति और खुशी ही मिलती रहे।
प्रसन्नता और सुख का सम्बन्ध व्यक्ति के अन्तर्मन से है। आदमी खुशियों के लिये आयोजन करता है, अपने बच्चे का बर्थ-डे मनाता है। अपने यहाँ भोज का आयोजन करता है, सौ-दो सौ लोग आते हैं, पंडाल बँधता है, विविध प्रकार के पकवान बनते हैं। दो घंटे की खुशियाँ नजर आती हैं, लोग खाना खाकर चले जाते हैं और फिर वही सन्नाटा पसर आता है। खुशियों के समारोह अन्ततः सन्नाटा देकर ही जाते हैं। शांति चाहिए तो अशांति से बचिए
__ अगर आप वाकई में प्रसन्नता और शांति पाना चाहते हैं तो मन को बदलें, मन की दिशा और परिणामों को बदलें। जीवन में जो मिले उसे प्रेम से स्वीकार करें। एक व्यक्ति मिठाई की दुकान पर गया और पूछा'तुम्हारे यहाँ सबसे अच्छी मिठाई कौनसी है ? हलवाई ने अपने यहाँ की हर मिठाई को एक दूसरे से अच्छा बताया। उस व्यक्ति ने कहा - 'मैं तो यह जानना चाहता हूँ कि कौनसी मिठाई सबसे अच्छी है ?' महाशय, मेरी दुकान की हर मिठाई सबसे अच्छी है' - हलवाई ने कहा। जिंदगी भी एक दुकान की तरह है जिसकी हर चीज अच्छी है। जो भी जैसा मिल रहा है उसमें कैसा गिला, कैसी शिकायत !
तुम दुःखी हो, क्योंकि तुम जो चाहते हो, पसंद करते हो वह तुम्हें नहीं मिल पा रहा है। प्रसन्न रहने की कला तो इसमें है कि जो तुम्हें मिल रहा है उसी को पसंद करना शुरू कर दो। ईश्वर हमें वह सब नहीं देता, जो हम चाहते हैं । जो ईश्वर ने दिया है, हम उसे पंसद करना शुरू कर दें। हम सदा खुश रहेंगे। सुख और दुःख दोनों का सम्मान करो। अगर आप अपने मन को इस दिशा में मोड़ने या बदलने में सफल हो जाते हैं तो प्रसन्नता अपने आप आएगी। प्रसन्नता उधार या किराए से नहीं मिलती। लोग हमारे पास आते हैं और कहते हैं - 'कोई ऐसा मंत्र बताइए कि जिससे मन को प्रसन्नता और शांति मिले।' मैं कहता हूँ- दुनिया में कोई भी ऐसा मंत्र नहीं है जिसको जपने से शांति पाई जा सके। शांति पाने का एक ही मार्ग है कि आप अशांति के निमित्तों से बचने की कोशिश करें। आपने अपने चारों ओर अशांति के इतने निमित्त खड़े कर लिए हैं कि उनके बीच शांति दफन हो गई है। चेहरे की मुस्कान भी कृत्रिम हो गई है जिसके कारण बाहर से तो व्यक्ति सुखी नजर आता है लेकिन अन्तर्मन में वह दुःखी ही है।
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