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तो क्या फर्क पड़ेगा? पिताजी ने कहा - 'अरे बेटा, एक दिन प्रवचन सुनने गया उसमें यह हालत ! अरे, तू इसी तरह करता रहा तो हमारा दिवाला ही निकल जाएगा।ये संतों की बातें सुनने के लिये होती हैं, जीने के लिये नहीं। अगर तेरी तरह मैं भी संतों की बातों को जीवन में लागू करना शुरू कर देता तो अभी तक कहाँ पहुँच जाता!
व्यक्ति मनोविनोद के लिये सुनना पसंद करता है। वह अपने मन के रूपान्तरण के लिये सुनना कहाँ पसंद करता है ! मैं जो जीवन की मर्यादाओं की बातें कह रहा हूँ वे मनोविनोद के लिये न हों, मन के रूपान्तरण के लिए हों, जीवन को बदलने के लिए हों। करें वरण, निर्मल आचरण
___मर्यादा के सम्बन्ध में जो पहली बात कह रहा हूँ वह है – 'आचरण की मर्यादा।' व्यक्ति का आचरण निर्मल होना चाहिए। अपना आचरण ऐसा रखो कि तुम्हें तो गर्व हो ही तुम्हारी आने वाली पीढ़ी भी गर्वोन्नत हो सके। अपने द्वारा ऐसा आचरण कभी न करो कि तुम्हें भी मुँह छुपाना पड़े और तुम्हारी संतानों को भी औरों के सामने शर्मिन्दा होना पड़े। ऐसा काम कभी न करो जिसे करते वक्त तुम्हारी अन्तरात्मा तुम्हें कहे कि यह काम मत करो। आचरण की मर्यादा हो कि इस सीमा से उस सीमा तक जीवन जीएंगे। प्रभावना नैतिक आचरण की
आचरण की मर्यादा में पहली है - 'रहन-सहन की मर्यादा।' जरा देख लें कि पहनावा कहीं ज्यादा भड़काऊ तो नहीं हो रहा है। कहीं पहनावा ऐसा तो नहीं है कि आपका पहनावा ही आपके प्रति गलत नजरिया बना रहा हो।
फैशन के नाम पर आजकल पहनावा इतना बिगड़ गया है कि पूछिये मत। हम पाश्चात्य जगत से केवल उनका पहनावा सीख रहे हैं। लेकिन उनके ईमान और सत्य को नहीं सीख रहे हैं । जो सीख रहे हैं उससे देश गर्त में जा रहा है। छोटे नगर और शहर छोड़ भी दिये जाएँ तो महानगरों का पहनावा इतना विकृत हो गया है कि वहाँ के लोग वस्त्रों के नाम पर टुकड़े लपेटे हुए नजर आते हैं। ऊपर के कपड़े नीचे आ रहे हैं और नीचे के कपड़े ऊपर चढ़ते जा रहे हैं। आपके अपने शौक हो सकते हैं, इच्छाएँ और भावनाएँ भी हो सकती हैं लेकिन हर परिवार और समाज की भी अपनी मर्यादाएं होती हैं। अपने शौक, फैशन और इच्छाओं के पीछे घर की मर्यादाओं को नहीं तोड़ा जाना चाहिए। अगर आप तीव्र गति से कार चला रहे हैं और सामने से कोई गुजर रहा है। तभी कार के ब्रेक फेल हो जाएँ तो गंभीर दुर्घटना हो सकती है। आपके अमर्यादित ढंग से कार चलाने के कारण किसी की जान भी जा सकती है। इसी तरह अमर्यादित आचरण के साथ अगर आप अपने जीवन को जी रहे हैं तो जानबूझकर अपने को बिगाड़ रहे हैं, मटियामेट कर रहे हैं।
हमारे यहाँ एक शब्द आता है प्रभावना' - क्या अर्थ है इसका? रुपये-पैसे, नारियल, लड्डू या अन्य कोई भी वस्त बांट देना प्रभावना नहीं है। वास्तविक प्रभावना वह है जहाँ व्यक्ति हमारे अच्छे चाल-चलन, आचार-विचार और व्यवहार से प्रभावित हो जाए। दूसरा व्यक्ति तुम्हारे निर्मल आचरण को देखकर खुद भी निर्मल आचरण से जीने का संकल्प करे - यह है प्रभावना - नैतिक आचरण की प्रभावना। कहकर करवाने की
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