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सौम्य स्वभाव की पत्नी न मिली तो वह तुम्हारे जीवन को दुःख से भर देगी, लेकिन गलत स्वभाव का मित्र मिल गया तो वह तुम्हारी सात पीढ़ियों को दुःखी कर देगा। गुस्सैल या गलत स्वभाव वाला पति मिल गया तो वह तुम्हारे जीवन को दुःखी करेगा लेकिन गलत आदत वाला मित्र मिल गया तो पूरे परिवार को ही दुःखी और पीड़ित कर देगा। व्यक्ति जैसा स्वयं होता है वैसा ही अपने मित्रों का चयन करता है। अथवा इसे यों भी समझ सकते हैं कि व्यक्ति के जैसे मित्र होते हैं वैसा ही वह स्वयं बन जाता है। व्यक्ति का जैसा नज़रिया और स्तर होता है, मित्र वैसा ही होता है। क्षणिक परिचय मित्रता नहीं
व्यक्ति की जैसी सोच, मानसिकता, चयन-दृष्टि होती है वह वैसे ही मित्र बनाता है। आदमी को पता नहीं है कि वह किस तरह के दोस्त चाहता है, उसमें कौनसी खासियत होनी चाहिए। बस, कहीं मिले थे, बचपन में स्कूल में पढ़ते थे, या ट्रेन में सफर करते हुए मिले थे या फिल्म देखने जा रहे थे तब मिले थे, या सत्संग में जाते हए मिल गए धीरे-धीरे परिचय बढा, हमने अपना विजिटिंग कार्ड उसे दिया, उसने अपना विजिटिंग कार्ड हमें दिया। मेल-मिलाप बढ़ा। इस तरह के मेल-मिलाप से मित्रता बढ़नी शुरू हो गई। न हम जांच-पड़ताल कर पाए कि सामने वाला व्यक्ति कैसा है और न ही वह जाँच-परख पाया कि हम कैसे हैं ? ___मैत्री-भाव सबके साथ रखा जाना चाहिए। जीवन में 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना सबके साथ रखनी चाहिए। मैत्री-भाव का जितना विस्तार हो, अच्छी बात है लेकिन निजी मित्रता बहुत सजगता और सावधानी के साथ हो क्योंकि हमारा मित्र हमारा प्रतिरूप हमारा सहचर होता है। वह जीवन के साथ जुड़ा रहता है। व्यक्ति सर्वाधिक मित्रों से प्रभावित होता है, माँ और पत्नी की बात कभी टाल भी सकता है, पर मित्र की बात नहीं टाल पाता। इसलिए भूलकर भी कोई ऐसा व्यक्ति हमारा प्रतिरूप न बन जाए, हमारा निकटवर्ती न बन जाए जो किन्हीं गलत मार्गों पर चल रहा हो या गलत आदतों का शिकार हो। अपनी संतान को इस बात का विवेक अवश्य दें कि वह जीवन में सबके साथ मैत्रीभाव, प्रेम और दया रखे, लेकिन जिसे वह अपना मित्र, सखा, सहचर या जीवन का अंग कह सके उसके लिए ऐसे व्यक्ति का चयन करना है, जिससे तुम भी गौरवान्वित हो, तुम्हारे जीवन का भी विकास हो और तुम्हारे जीवन में अच्छे संस्कारों की शुरुआत भी हो। मित्र में दाग़, तुरंत दें त्याग
आपका कोई ऐसा परम मित्र होगा जो बचपन से ही आपके साथ रहा है, आप लोग स्कूल एक साथ गए हैं, कॉलेज में भी एक साथ पढ़े हैं, एक ही साइकिल या स्कूटर पर बैठकर आए गए हैं, लेकिन जिस दिन आपको खबर लगे कि आपका घनिष्ठतम मित्र भी किसी गलत सोहबत में पड़कर, गलत आदतों और गलत संस्कारों की गिरफ्त में आ गया है तो उन गलत बातों को नजरअंदाज न करें। अपने मित्र को समझाने की कोशिश करें, उसे सही रास्ते पर चलने की फरियाद करें। तब भी अगर आप महसूस करें कि आपका मित्र गलत आदतों का त्याग करने के लिए तैयार नहीं है तो आपके हित में है कि आप अपने उस घनिष्ठ मित्र का भी त्याग कर दें। उसकी कुटेव को नज़रअंदाज़ न करते हुए आप उसे ही छोड़ दें। मित्र वह नहीं जो हाँ में हाँ मिलाये। सच्चा मित्र वही है
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