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किनारे पर खड़ा मित्र सुन रहा है, पर बचाने के लिए नहीं आ रहा, तो डूबते हुए मित्र ने कहा, मेरी आवाज़ सुन रहे हो फिर बचाने के लिए क्यों नहीं आते ? उसने कहा, मित्र तूने बोर्ड का एक तरफ का ही भाग पढ़ा है इसमें दूसरी तरफ लिखा है कि मरे की लाश निकालने वाले को एक हजार रुपये का ईनाम !
बचो ! अगर बच सकते हो तो ऐसे स्वार्थी मित्रों से बचो । मनुष्य मैत्री भाव का विस्तार करे और वक्त आने पर दुश्मनों के भी काम आने का प्रयास करें। घटना दूसरे विश्व युद्ध की है। है तो चार पंक्ति की घटना, पर है बड़ी प्रभावी ! कहते हैं - द्वितीय विश्व युद्ध में एक जापानी सैनिक कंधे पर गोली लगने के कारण मैदान में घायल होकर गिर पड़ा। वह दर्द के मारे कराह रहा था तभी एक भारतीय सैनिक जो युद्ध के मैदान में खड़ा था, उसके मन में करुणा जगी, उसने सोचा, अंतिम क्षणों में कौन-सी शत्रुता । वह कप में चाय लेकर उसके पास गया, अपनी गोद में उसका सिर पर रखा और यह कहते हुए चाय पिलाने लगा कि तुमने भारतीय सैनिक की मोर्चे पर वीरता देखी है, अब उसकी दयालुता भी देखो। वह उसे चाय पिलाने के लिए जैसे ही झुका कि जापानी सैनिक ने अपने पास छिपाकर रखे हुए चाकू को उसकी छाती में घोंप दिया। भारतीय सैनिक भी घायल हो गया और दोनों ही सैनिक उपचार के लिए एक ही अस्पताल में भर्ती किए गए। तीसरे दिन भारतीय सैनिक को होश आया, उसने देखा कि उसके पास ही तीसरे पलंग पर वही जापानी सैनिक लेटा हुआ है। वह जब उसके पास पीने केलिए चाय की प्याली आई तो उसे लेकर उस जापानी सैनिक के पास गया और कहा, 'लो भैया! चाय पी लो। मैं उस दिन तो यह इच्छा पूरी नहीं कर पाया।' भारतीय सैनिक के इस व्यवहार को देखकर वह जापानी सैनिक भाव-विह्वल हो गया। उसकी आँखें भर आईं और कहा आज मुझे पता चला कि आखिर बुद्ध का जन्म भारत में ही क्यों हुआ ? मित्र हो अपने से बेहतर
मित्र बनाना आसान होता है, लेकिन उन्हें निभाना बहुत मुश्किल होता है। अच्छा दोस्त बनाना आपकी सोच पर निर्भर है। किसी को दोस्त बनाने में, उससे निकटता बढ़ाने में सालों-साल लग सकते हैं, लेकिन दोनों
मध्य का विपरीत वातावरण उस दोस्ती को दस मिनट में अलग कर सकता है। मित्र और संबंध बनाना सरल हो सकता है, लेकिन उन्हें दीर्घ अवधि तक यथावत बनाए रखना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए मैं कहता हूं कि अपनी दृष्टि उदार रखो, केवल मित्र को ही मित्र न मानो, सभी से मैत्री रखो। पता नहीं जीवन में कब किससे क्या काम पड़ जाए। दुश्मन भी अगर है तो मन में उसके प्रति भी प्रेम भाव रखें। कभी दुश्मन को मिटाने की न सोचें, सोचते हैं तो दुश्मनी मिटाने की सोचें। उसके साथ भी मैत्री व्यवहार बढ़ाने की ही सोचें क्योंकि पता नहीं, कब वह आपके जीवन में किस रूप में काम आ जाए।
तुम अपने दुश्मन को भी
महावीर और मैक्यावली के सिद्धांत में यही तो फ़र्क़ था कि महावीर कहते थे दोस्त मानो और मैक्यावली कहते थे तुम अपने दोस्त के साथ भी दुश्मन की तरह सावधानी रखो। इसलिए मित्र ऐसे बनाएं जो आपसे बेहतर हों। बचपन में हमारे पिता हमसे कहते थे कि अपने से बड़े-बूढ़े लोगों को अपना मित्र बनाओ ताकि तुम्हारे संस्कार परिष्कृत हो सकें और उनके जीवन के अनुभवों का लाभ भी तुम्हें मिल सके।
जीवन में आप मित्र बनाना चाहते हैं तो अपने से बेहतर लोगों को ही मित्र बनाएं। अगर आप किशोरावस्था
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