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एक व्यक्ति जो अपने बच्चों के सामने ऊँची-ऊँची डींगे हाँकने की, ऊँचे-ऊँचे आदर्श स्थापित करने की, सत्य, ईमान, धर्म और संस्कार के दीप जलाने की बातें करता है उसके लिए अच्छा होगा कि वह इनके लिए भाषण देने के बजाय स्वयं को इन कार्यों के लिए समर्पित करके उदाहरण प्रस्तुत करें।
याद रखिए खुशियाँ कभी किराये पर नहीं मिलती। मैं प्रायः देखा करता हूँ कि हर घर में साजो-सामान लगभग एक जैसा होता है - वही दो या चार पहिया वाहन, टी.वी. फ्रीज, बीवी, बच्चे, दुकान, मकान । फिर भी एक परिवार के सात सदस्य खुश नज़र आते हैं और दूसरे परिवार के पांच सदस्य दुःखी नज़र आते हैं। एक जैसी सुविधाएं दोनों परिवारों में होने के बावजूद कहीं पर खुशियाँ हैं और कहीं ग़म है। सुबह ईद तो शाम दिवाली
जहाँ परिवार खुशहाल होता है वहां की हर सुबह पर्व की तरह होती है। जिन परिवारों में खुशियाँ नहीं होती उन्हें ईद मनाकर खुशियाँ मनानी पड़ती है, जहाँ परिवार में प्रेम और आनन्द नहीं होता उन्हें होली पर खुशियाँ पानी पड़ती हैं और जिन लोगों के अन्तर्मन में प्रेम और शांति के दीप नहीं जलते उन लोगों के लिए दिवाली आया करती है। जहाँ लोगों के घरों में खुशियाँ हैं वहाँ रोज ही होली, दीवाली और ईद का पर्व होता है। रिश्तों के अपने खास अर्थ होते हैं। हम परिवार के आपसी रिश्तों को यूं ही ऊपर-ऊपर न लें, क्योंकि इन्हीं रिश्तों में आदर होता है, इन्हीं में सम्मान होता है, हर रिश्ते में प्रेम और त्याग की भावना भी जुड़ी होती है।
परिवार के हर सदस्य की अलग-अलग खूबियाँ होती हैं । कोई यह न सोचें कि परिवार के सभी सदस्य एक जैसा ही सोचेंगे। यह भी संभव नहीं है कि परिवार के सारे लोग एक जैसे कर्म करें, एक जैसी आदत और एक जैसा स्वभाव रखें। जैसे हर कुएं के पानी का स्वाद अलग होता है वैसे ही परिवार के हर सदस्य का स्वभाव भी अलग-अलग होता है। जैसे कुछ लोगों की खास खूबियाँ होती हैं वैसे ही कुछ लोगों की खास खामियाँ, खास कमजोरियाँ भी होती हैं । अलग-अलग किस्म के और अलग-अलग स्वभाव के लोग एक परिवार में जीते हैं । इन कमजोरियों, खूबियों, खामियों और आदतों में जीते हुए भी अगर एक-दूसरे के साथ सामंजस्य के भाव बने रहते हैं तो वह परिवार समन्वित होता है । समन्वय के भावों से परिवार में खुशहाली रहती है। वहाँ भाई, भाई से टूटकर नहीं, मिलकर रहता है । ननद और भोजाई आपस में नाक सिकोड़कर नहीं, प्रेम और आत्मीयता से जीते हैं । सास और बहू एक-दूसरे से कटकर, हटकर नहीं बल्कि दूध में शक्कर जैसे घुलमिलकर रहते हैं। स्वर्ग की सावधानियाँ
हाँ, परिवार को स्वर्ग बनाया जा सकता है, परिवार को खुशहाल और खुशियों से लबरेज किया जा सकता है। बस जरूरत है कुछ सावधानियों की। व्यवहार की थोड़ी-सी असावधानियाँ जहाँ परिवार को नरक बना देती हैं, वहीं व्यवहार की थोड़ी-सी सावधानियाँ हमारे परिवार को स्वर्ग बनाए रखती हैं । घर का कोई सदस्य गुस्सैल या क्रोधी प्रकृति का है तो ऐसा न समझें कि उसे अलग कर दिया जाए बल्कि यह सोचें कि इस सदस्य के साथ अपना तालमेल कैसे स्थापित करें। दूसरे यह कोशिश करें कि उसके साथ घर के सभी सदस्यों का ऐसा सरलतम व्यवहार हो कि धीरे-धीरे उसका क्रोध, अहंकार, गुस्सा भीतर-ही-भीतर गलना-पिघलना शुरू हो जाए। ईश्वर
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