Book Title: Jine ki Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 186
________________ द आर्ट ऑफ लिविंग जीवन प्रभु का वरदान है।जीवन का उसी तरह आचमन कीजिए। जैसे कि आप श्रीप्रभुकेचरणामृत का पान करते हैं। प्रभुकी पूजा और प्रार्थना तो सभी करते हैं, लेकिन जीवन की महान सौगात देने के लिए प्रभु के प्रति आभार का भाव हम कभी समर्पित नहीं करते हैं। जीवन देने के लिए जैसे ही हम प्रभु के प्रति आभारी होंगे, हमारा जीवन के प्रति नज़रिया खुद-ब-खुद बदल जाएगा। तब आपके पाँव, पाँव नहीं रहेंगे, सूर काइकताराऔर मीराकेधुंघरू बन जायेंगे। __ जीवन को जीना खुद ही एक बहुत बड़ी कला है। जैसे ढोलक पर थाप बजाना आ जाए तो संगीत के सुर-ताल झनझना उठते हैं, ऐसे ही जीवन को जीना आ जाए तो जीवन का हर दिन, हर घड़ी एक उत्सव बन जाए। राष्ट्र-संत महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर जी की यह मीठी-मधुर, रसभीनी पुस्तक 'जीने की कला हमारे लिए हमारे ही जीवन का दस्तावेज़ है।संतप्रवर इतने करीने से हमारे दिल केतारों को छूते हैं कि अनायास ही हमारे भीतर से शांति, सौन्दर्य और आनन्द के संगीत का झरना फूट पड़ता है। जीवन जीने के तौर-तरीके सिखाने वाली किताबें यूँ तो दुनिया में और भी आई हैं, लेकिन जब आप इस किताब को पढ़ेंगे तो आप बीज न रह पाएँगे, फूल और फूल की तरह सुवासित हो उठेगे, जिंदगी बदल जाएगी। कह उठेंगे आप - धन्यभाग! 9165 Jain Education International FORsonay Ofivate Use Only www.jainelibrary.org

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