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देखने को मिले । संग्रहालय के निदेशक हमारे साथ चल रहे थे। मैंने पूछा शास्त्रों में दो मुँहे साँप का उल्लेख आता है, अपने संग्रहालय में क्यों नहीं है। कहने लगे जब से दो मुँहे इंसान पैदा होने शुरू हो गए हैं तब से दो मुँहे साँप पैदा होने बंद हो गए हैं। शायद ! दो मुँहे साँप से भी ज्यादा ख़तरनाक दो मुँहे इंसान होते हैं ।
सौंपिए सूरज को अपना अंधेरा
आप अपने व्यवहार को बेहतर बनाएँ और इसके लिए ज़रूरी है कि आप अपने विचारों को बेहतर बनाएँ । विचार और व्यवहार का संतुलन होना चाहिए। जब भी किसी से मिलें हीनता का भाव न रखें, न ही हीन भावना के विचार व्यक्त करें। मैंने लोगों को कहते पाया है 'ठीक है यार, जी रहे हैं, ठीक है, भैय्या वक्त काट रहे हैं, क्या करें जैसे-तैसे रोटी का जुगाड़ हो रहा है, अरे भैय्या क्या बताएँ किस्मत ही खराब है, अरे कैसी क़िस्मत फूटी जो इस औरत से मेरी शादी हुई'। पता नहीं, व्यक्ति कैसी-कैसी विपरीत टिप्पणी अपनी क़िस्मत और अपने बारे में करता रहता है। याद रखिए, सूरज की किरणें केवल आपकी परछाइयाँ बनाने के लिए नहीं हैं, सूरज की किरणें आपके जीवन को प्रकाशित करने के लिए हैं। जो सूर्य की किरणों से केवल अपनी छाया और परछाई देखता रह जाता है उसके लिए सूरज व्यर्थ है और जो सूरज की किरणों का उपयोग जीवन के प्रकाश के लिए करता है। उसके लिए ही सूरज सार्थक है। रोशन कीजिए सूरज की किरणों से अपने जीवन को ।
व्यवहार में न तो अकड़ दिखाएँ और न ही हीनता । जब तक व्यक्ति मन का निर्धन होता है, तब तक अपने धन की शेखी बघारता रहता है और जब तक अज्ञानी होता है तब तक अपने आपको ज्ञानी मानता है, जिसे अपने अज्ञान का बोध हो जाए वही वास्तव में ज्ञानी हो जाता है। याद रखें, जिसे अपने जीवन में अपार सम्पन्नता पाने के बाद भी सम्पन्नता का अहंकार नहीं होता, वही महान है। अहंकार किसका और कैसा ! आकाश को देखो तो तुम्हें प्रेरणा मिलेगी कि एक दिन तुम्हें ऊपर उठना है, कैसा अहंकार ! और ज़मीन को देखो तो तुम्हें प्रेरणा मिलेगी कि एक दिन तुम्हें ज़मीन में समा जाना है, फिर कैसा अहंकार ! जब भी किसी से मिलो, सहजता, सरलता और सहृदयता से मिलो। बड़ा वह नहीं जो सम्पन्न है या बड़ी-बड़ी बातें करता है, बड़ा वह होता है जो जीवन में, व्यवहार में बड़प्पन दिखाता है। औरों से ऐसे मिलो कि हमारा किसी से मिलना यादगार बन जाए। हमारे व्यवहार में इतनी विनम्रता और शालीनता तो होनी ही चाहिए कि दूसरों के द्वारा खुद को मान दिये जाने पर हम भी उसके मान का सम्मान कर सकें।
सम्मान देकर सम्मान लें
याद रखें, जीवन में मान पाने के लिए नहीं, देने के लिए होता है। इसे औरों को देकर खुश होइये। जीवन में सम्मान पाने की कोशिश न करें। जो व्यक्ति सम्मान पाने की ख्वाहिश रखता है, वही अपमानित होता है। जिसके भीतर सम्मान पाने की आकांक्षा नहीं है वह कभी अपमानित नहीं हो सकता। आप कितने भी महान क्यों न हों, लेकिन छोटे-से-छोटे व्यक्ति का भी मान करना सीखें। अगर आप किसी मीटिंग में बैठे हैं और एक अदना - सा व्यक्ति जो न तो सम्पन्न है, न किसी संस्था या संगठन का अध्यक्ष या मंत्री है, लेकिन वह विलम्ब से पहुँचा है तो आपका कर्त्तव्य है कि आप खड़े होकर उसका सम्मान करें। ऐसा करके आप स्वयं सम्मानित होंगे। जो भी
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