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हैं। थोड़ी देर पहले आप शांत थे लेकिन थोड़ा-सा निमित्त मिलते ही दो मिनट बाद आप अशांत हो जाते हैं । निराशा, अनुत्साह, तनाव, भय, चिंता, अवसाद, क्रोध, कुंठा ये सभी दोष इसीलिए होते हैं कि हम अपनी वैचारिक स्थिति को संतुलित नहीं रख पाते हैं । व्यक्ति के देखने और सोचने के दो नज़रिये होते हैं - व्यग्रता से सोचना, समग्रता से सोचना ।
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कभी कोई अचानक दुर्घटना हुई, कभी किसी ने अप्रिय शब्द कहे, हम समाज के मध्य बैठे और हमारे विरुद्ध गलत टिप्पणी हुई कि हम तत्काल अपनी सोच को व्यग्र कर लेते हैं और ग़लत निर्णय कर लेते हैं। एक व्यक्ति रोज़ स्थानक में जाता था । संयोग की बात कि स्थानक में दूसरे पदाधिकारी से उसका मनमुटाव हो गया । व्यग्रता में उसने निर्णय ले लिया कि आज के बाद वह स्थानक में पांव नहीं रखेगा। व्यग्रता में लिए गए निर्णय हमेशा ग़लत होते हैं ।
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दूसरी सोच होती है समग्रता की । इधर का भी देखो, उधर का भी देखो, लाभ-हानि, आगे-पीछे - इन सबका विवेकपूर्वक निर्णय करने के बाद अपने जीवन में निर्णय करो। एक होता है सकारात्मक चिंतन, दूसरा है नकारात्मक चिंतन । जब आप किसी के बारे में नकारात्मक चिंतन लेकर चल रहे हैं तो जब भी उसके बारे में बात करेंगे आपका दृष्टिकोण उसे काटना ही होगा । दो तरह के लोग होते हैं एक कैंची की प्रकृति के, दूसरे सुई की प्रकृति के । जो कैंची की प्रकृति की सोच का मालिक है वह जहाँ बैठेगा, जिसकी सुनेगा, जिसको पढ़ेगा उसका काम होगा काटना । वह ढूंढेगा कि इसमें यह कमी है, उसमें यह कमज़ोरी है । पर सुई की प्रकृति के लोग हमेशा संयोजन और जोड़ने की सोच ही पालेंगे ।
सकारात्मकता का अमृत
आप अपने आप को देखें कि आप किस सोच के धनी हैं ? कहीं आपके भीतर नकारात्मक सोच तो नहीं पल रही है ? नकारात्मकता हमारे जीवन का ज़हर और सकारात्मकता हमारे जीवन का अमृत है। अगर आप किसी फैक्ट्री के मालिक हैं या किसी दुकान के मालिक हैं, किसी संस्था के अध्यक्ष हैं, किसी समाज का संचालन कर रहे हैं, घर और परिवार के मुखिया हैं तो उसके सही संचालन की पहली अनिवार्यता है कि आपकी सोच सकारात्मक हो, विधायक हो । अगर आपकी सोच सकारात्मक है तो आप सही नज़रिये से निर्णय करेंगे । सास और बहू घर में दो महिलाएँ हैं और तो और अगर किसी आश्रम में भी दो लोग हैं। अगर ये वहाँ परस्पर दिन भर नकारात्मक रवैया अपना रहे हैं तो मान लीजिए ये दोनों दिन भर अशांत हैं और अगर दोनों सकारात्मक रवैया लेकर चल रहे हैं तो दोनों ही शांत हैं ।
सभी के जीवन में विपरीतताएं आती हैं। नकारात्मक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति विपरीतता को देखकर परेशान हो जाता है कि अब वह जीवन में कुछ नहीं कर सकता, जबकि सकारात्मक दृष्टिकोण वाला विपदा के आने पर यह सोचता है कि एक दरवाजा बंद हो गया है तो दूसरे दरवाज़े की तलाश करो, दूसरा बंद हो गया है तो तीसरे की तलाश करो, तीसरा बंद हो गया है तो चौथे की तलाश करो। वह जानता है कि प्रकृति की व्यवस्था है कि निन्यानवें द्वार बंद हो जाएँ तब भी एक द्वार खुला ज़रूर रहता है। जीवन में बंद द्वारों को देखने और बंद देखकर
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