Book Title: Jine ki Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 162
________________ रखना जो व्यक्ति अपने जीवन में बेलगाम आकांक्षाएँ रखता है वह सुख की रोटी खाने को तरस जाता है।' ऐसा ही हुआ, सिकंदर अपनी आयु के पैंतीस वर्ष भी पूर्ण नहीं कर पाया था कि बीमार हो गया । रोग भी ऐसा लगा कि चिकित्सकों ने कह दिया कि उसे रोगमुक्त कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकीन है। उसकी आयु के एक-दो घंटे ही शेष रहे थे कि चिकित्सकों ने कह दिया कि अब उसे जो कुछ करना है कर ले। सिकंदर अपनी माँ को बहुत प्यार करता था। वह चाहता था कि उसकी माँ जो उससे बहुत दूर यूनान में थी उसका मुँह देख ले और उसकी गोद में सिर रखकर अपने प्राण छोड़े, लेकिन यह असंभव था। चिकित्सक कुछ नहीं कर पा रहे थे। तब सिकंदर ने वही किया, जो हर सम्पन्न व्यक्ति करता है, उसने अपना दाँव खेला और कहा, 'अगर तुम लोग मुझे चौबीस घंटे की जिंदगी दे सके तो मैं प्रत्येक डॉक्टर को एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ दूँगा ।' डॉक्टरों ने कहा, 'कैसी मज़ाक करते हो सिकंदर । क्या धन से, सोने से जिंदगी खरीदी जाती है?' तब हताश हुए सिकंदर ने अपनी जिंदगी का दूसरा दाँव खेला। उसने कहा, 'तुम मुझे केवल बारह घंटे की जिंदगी दे दो मैं तुम्हें अपने विश्व साम्राज्य का आधा हिस्सा दे दूँगा ।' डॉक्टरों ने कहा, 'हम कोशिश कर सकते हैं, लेकिन बचाना हमारे हाथ में नहीं है । ' हताश होकर सिकंदर ने जीवन का अंतिम दांव लगाया कि 'अगर कोई मुझे दस घंटे की जिंदगी दे दे तो दुनिया का सारा साम्राज्य उसके नाम कर दूंगा।' लेकिन कोई ऐसा न कर सका। सिकंदर देखता रहा कि उसकी सांस धीमी पड़ने लगी, उसके प्राण निकलने को हो गए, तब उन क्षणों में मरने से पहले, अपने पास खड़े लोगों से कहा, 'मेरे मरने के बाद लोगों को बताना कि सिकंदर जिसने सारी दुनिया को जीता, पर अपनी ज़िदंगी से हार गया।' जीवन नहीं है बोझ मेरी बातें भी इसी से संबंधित हैं। मैं आपको यही बताना चाहता हूँ कि कहीं आप अंतिम समय में ज़िंदगी से न हार जाएँ, आपको यह न लगे कि सब कुछ पाकर भी आपने जीवन को खो दिया। पानी व्यर्थ बहता हो तो खटकता है, बल्ब फिज़ूल जल रहा हो तो खटकता है, कुछ भी अनावश्यक हो रहा हो तो खटकता है - यह अच्छी बात है पर व्यर्थ जाती हुई ज़िंदगी हमें क्यों नहीं खटकती। मनुष्य की यह बेशक़ीमती ज़िंदगी जिसमें वह अपनी महानताओं को उपलब्ध कर सकता है, इस ज़िंदगी के प्रति सचेत क्यों नहीं रहता। आप यह सावधानी तो रखते हैं कि कहीं धंधे में घाटा न लग जाए, बेटा बिगड़ न जाए, पत्नी किसी और के साथ न हो जाए- इनमें बहुत सावधानी रखी जाती है लेकिन अपनी ज़िंदगी के प्रति क्या इतनी ही सावधानी रखते हैं ? अनावश्यक कार्यों में, दोस्तों के साथ निरर्थक बातों में, ताश- जुएँ में, अपना समय बर्बाद करते रहे हैं । और तो और, पूछने पर कि भई क्या कर रहे हो तो उत्तर मिलता है टाइम-पास कर रहे हैं । क्या ज़िंदगी केवल ‘पास' करने के लिए है ? क्या हमारी ज़िदंगी इतनी भारभूत बन गई है कि हमें ज़िंदगी को पास करना पड़ रहा है । जीवन गतिशील हो, कृत्रिम नहीं वास्तविक हो । अपनी ज़िंदगी में देखें कि हमारी मुस्कान कृत्रिम है या वास्तविक है ? व्यक्ति के जीवन का सुख-शांति - आनंद सब कुछ कृत्रिम हो गया है। भीतर कुटिलता से भरा हुआ आदमी बाहर से कोमल नज़र आ रहा है। बाहर से मुस्कुराने 161 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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