Book Title: Jine ki Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 141
________________ आपके द्वार पर आए उसे सम्मान दें, फिर चाहे वह आपका शत्रु ही क्यों न हो। फ्रांस के सम्राट हेनरी अपने सभासदों के साथ राजमार्ग से जा रहे थे। उन्होंने देखा एक भिखारी सड़क पर खड़ा है। राजा को देखकर वह सड़क पर खड़ा हो गया। राजा के निकट आने पर उसने अपनी टोपी उतारी और राजा को प्रणाम किया। सम्राट ने जब यह देखा तो वे अधिकारियों के साथ पांच सैकण्ड के लिए वहीं खड़े हो गए और उन्होंने भी अपनी टोपी उतारी और भिखारी को प्रणाम किया। अधिकारियों में फुसफुसाहट हुई कि यह क्या, हमारे सम्राट भिखारी को भी प्रणाम करते हैं ? सम्राट ने सुना तो कहा 'मैं यह उदाहरण नहीं छोड़ना चाहता कि हेनरी भिखारी से निम्न स्तर का है कि भिखारी उसे प्रणाम करे, उसका सम्मान करे तो क्या हेनरी किसी भिखारी को सम्मान देना नहीं जानता?' इसलिए याद रखें कि भले ही आप सत्तासीन हों, सम्पन्न हों, ऊँचे पद पर हों लेकिन सबसे पहले मनुष्य हैं और मनुष्य होने के नाते एक-दूजे को सम्मान अवश्य दें। किसी दूसरे का किया गया सम्मान स्वयं अपना ही सम्मान है। बोलें प्यार की बोली मनुष्य होने के नाते आपका कर्त्तव्य है कि आप औरों के साथ सभ्यता से पेश आएँ, फिर वह आपकी पत्नी या संतान ही क्यों न हो। आपकी पत्नी आपकी अर्धांगिनी है, सम्मानपूर्वक आप उसे अपने घर लाए हैं उसे भी 'तुम' न कहें, शालीनतापूर्वक व्यवहार करें। हो सके तो अपने बच्चों को भी 'आप' कहिए। अगर आप घर में 'आप' की भाषा बोलते हैं तो घर में सभी 'आप' और सम्मान की भाषा बोलेंगे और आप घर में 'तू-तू, मैं-मैं' की भाषा बोलते हैं तो घर का हर सदस्य बातचीत में तू-तू, मैं-मैं' का ही प्रयोग करेगा। ___ हमारी एक साधिका बहिन है, अंजु जी गर्ग। उनकी भाषा की शिष्टता गजब की है। हर किसी को प्रभावित करता है उनका वाणी व्यवहार । इस युग में जहाँ पति-पत्नी भी एक दूजे को तुम कहते हैं । लोग अपने बड़े भाईबहिन को भी तुम कहते हैं, वहाँ वे अपनी सन्तानों को भी आप कहती हैं । कोई अपने से छोटा भी क्यों न हो, पर उसके साथ भी व्यवहार तो सम्मानपूर्वक ही होना चाहिए। हमें इतना महान होना चाहिए कि नौकर के साथ भी हम सम्मानपूर्ण भाषा का प्रयोग करें। अरे नौकरी करना तो उसकी मजबूरी है वरना वह भी तुम्हारा मालिक बन सकता था। मुझे याद है-मुम्बई में एक भिखारी सड़क के किनारे बैठा था। तभी उधर से एक सम्पन्न व्यक्ति निकला। भिखारी ने कहा, 'माई-बाप कुछ दीजिए।' उस व्यक्ति ने झल्लाकर कहा, 'हुंह, बैठ जाते हैं भीख मांगने, भीखमंगे कहीं के' थोड़ी गालियाँ भी दी और कहा 'मेरी दुकान पर आकर बैठ, कुछ काम कर, तीस रुपये रोज के दे दूंगा।' भिखारी बोला, 'साहब आप तीस रुपये की बात करते हैं। आप मेरी दुकान पर मेरे साथ बैठ जाओ मैं आपको साठ रुपये रोज के दूंगा।' अब सम्पन्न व्यक्ति का चेहरा देखने लायक था। मैंने देखा एक व्यक्ति की विचित्र आदत थी। कोई व्यक्ति अगर उनसे मिलने घर आता तो वे उसे भोजन का आग्रह करते और वह जब भोजन करते हुए दो कौर भी नहीं खा पाता तो कहते – 'अच्छा हुआ आपने खाने की हाँ कर ली मैं अभी ये खाना कुत्तों को ही डाल रहा था।' तुम भोजन कराकर भी अपनी ओछी वाणी के चलते उसे 140 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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