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ईश्वर का चिंतन करना शुरू कर दो। अब तो कम से कम अपने जीवन के लिए कोई बोध, कोई होश, कोई जागरूकता की बात उठानी शुरू कर दो। अपने हाथ से तुमने स्वर्गीय दादा-दादी को जलाया था, पर होश नहीं आया । और तो और बीस साल के बेटे का भी अपने हाथों से दाह संस्कार किया था तब भी तुम्हारे अन्तर्मन की आसक्ति में कोई कटौती नहीं हुई। हाँ, हम अपने बुढ़ापे को सार्थक कर सकते हैं, इसे नई दिशा दे सकते हैं, इसे बजाय जीवन-मुक्ति का पर्याय बना सकते हैं।
रफ़्ता - रफ़्ता रिस रही ज़िंदगी
. व्यक्ति जब पचास वर्ष का हो जाए तो वृद्धावस्था की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। यह न सोचें कि बुढ़ापा मुझे नहीं मेरे पड़ौसी को आया है। तब तो मुश्किल हो जाएगी क्योंकि एक दिन बुढ़ापा आपको अपने चंगुल में फँसा ही लेगा । जीवन तो शिवलिंग पर लटका हुआ पानी का वह घड़ा है जिसमें नीचे की ओर छेद है और बूँद-बूँद कर पानी रिस रहा है। कौन-सी बूँद अंतिम बन जाएगी इसकी तो हमें खबर भी नहीं हो पाएगी। हमारी ज़िंदगी धीरे-धीरे रिस रही है। सभी रफ्ता रफ्ता मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं। हम बुढ़ापे को इस तरह जिएँ कि वह जीवन का पड़ाव बनें, मृत्यु का नहीं ।
मैं उन लोगों को सतर्क करना चाहता हूँ जो आज बुढ़ापे की दहलीज़ पर हैं, लेकिन आने वाला कल बुढ़ापे का है । सावधान हो जाएँ वे लोग जो कल तक तो जवान थे पर आज बुढ़ापे में जीने को मज़बूर हैं । जिन्हें जीवन जीने की कला आई, जिन्हें जीवन जीने का मार्ग मिला उनके लिए जीवन धन्य हो गया। यह आप पर निर्भर है कि आप अपने जीवन को गुनगुनाते हुए जियें या भुनभुनाते हुए जिएँ । बुढ़ापा है तो अच्छे गीत गाओ, अच्छी कविताएँ गाओ, अच्छे चित्र बनाओ, प्रकृति के अच्छे नज़ारे देखो, अच्छे बोल बोलो, अच्छे संवाद करो और अच्छी ज़िंदगी जीने की कोशिश करो। यह हम पर निर्भर है कि हम जीवन को कौन-सी दिशा और मार्ग दे रहे हैं अगर जवानी सुख भोगने के लिए है तो बुढ़ापा दुःख भोगने के लिए नहीं है। बुढ़ापा पीड़ाओं को भोगने या शैय्या पर पड़े रहने के लिए नहीं है और न ही बेकार की बकवास करने के लिए है ।
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बुढ़ापा तो शांति से जीने के लिए है। जवानी में व्यक्ति शांति नहीं पा सकता क्योंकि जवानी में उधेड़बुन रहती है, मैं कहूँगा कि जवानी को अगर सुख से जीओ, तो बुढ़ापे को शांति से जीओ। हम ऐसा क्या करें कि हमारा बुढ़ापा सार्थक हो जाए। हमारा बुढ़ापा हमारे लिए उपयोगी बन जाए। मृत्यु से पहले हमारी मुक्ति का मार्ग खुल जाए। बुढ़ापे के लिए तीन संकेत आपको देता हूँ जिससे हम अपने बुढ़ापे को सही तरीके से जी सकें, स्वस्थ और प्रसन्न मन से जी सकें। बुढ़ापा हो – स्वस्थ, कार्यरत और सुरक्षित ।
लीजिए उचित आहार और व्यायाम
बुढ़ापे में पहली सावधानी रखी जानी चाहिए उचित आहार की। संयमित व संतुलित आहार लें। ज़वानी में तो आप सब कुछ हज़म कर लेते थे, तीखा - खट्टा-मीठा-चरपरा सब पच जाता था, लेकिन बुढ़ापे में आप ऐसा नहीं कर पाएँगे क्योंकि पाचन-तंत्र कमजोर हो जाता है । आहार-विहार, खान-पान का संयम बुढ़ापे में लाभकारी रहता है । समारोह में विभिन्न व्यंजनों को देखकर ललचाएँ नहीं। ये आपके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव
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