Book Title: Jine ki Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 121
________________ के हैं, युवावस्था के हैं तो किसी से अधिक मित्रता न बढ़ाएँ। अगर मित्रता बढ़ भी गई है और आपकी जानकारी में उसकी गलती आ गई है तो तत्काल उससे दरी बना लें। दसरे अपने मित्रों को ज्यादा घर में आवागमन न दें। अगर ज्यादा मित्र घर में आ रहे हैं तो ध्यान रखें घर में आप अकेले नहीं आपकी पत्नी भी है। आप पति-पत्नी ही नहीं आपकी बेटी भी है, केवल बेटी ही नहीं परिवार के अन्य सदस्य भी हैं । इसलिए जब तक आप पूरी तरह संतुष्ट न हो जाएँ दोस्तों को घर में प्रवेश न दें। यह दुनिया तो ऐसी हो गई है कि अपने खून के साथ भी पूरा भरोसा नहीं रख सकती तो दोस्तों के प्रति भरोसा कैसे रखा जा सकता है। घर, घर वालों के लिए ही अपने घर का पता या फोन नंबर हर किसी को न दें। दुकान का काम दुकान तक रहे, मित्रों का काम समाज व संस्था तक रहे। घर में तो परिवार के लोग ही आएं-जाएं तो ही अधिक अच्छा है। आप अपने पुत्र को निःसंकोच कह सकते हैं कि तुम्हारे मित्रों का रात बारह-एक बजे तक आना-जाना न तो तुम्हारे हित में है और न ही हमारे हित में है। उसे यह भी सलाह दें कि देर रात तक भटकते रहना भी उसके हित में नहीं है। आज तो पुत्र आपके अंकश में है. उसे समझा सकते हैं। और एक बात और ! अगर ऐसे ही नज़रअंदाज करते रहे तो बडे होकर वह आपकी कोई बात नहीं सुनने वाला है। एक बात और ! अगर आप सुंदर हैं, सम्पन्न हैं तो हर कोई आपसे दोस्ती बनाना चाहेगा। इन दोनों में दोस्ती के लिए प्रमुख बात होती है- मन में छिपी हुई वासना और सम्पन्न की मित्रता में स्वार्थवृत्ति प्रमुख रहते हैं। जैसे फूल पर मधुमक्खी भिनभिनाती है, मैंने देखा है कि लोग सुंदर और सम्पन्न के आसपास भिनभिनाते हैं। इसलिए सावधान रहें उनका दृष्टिकोण अलग हो सकता है, उनकी मानसिकता अलग हो सकती है। अगर लड़की है तो किसी लड़के को अपना मित्र बना सकती है, और युवक हैं तो किसी युवती को अपना मित्र बना सकते हैं, पर सतर्क जरूर रहें कि कहीं आप उलझ न जाएं और कहीं वह आपको उलझा न लें। अपनी लड़की को अगर अपने शहर से बाहर पढ़ने भेज रहे हैं तो उसे समझा दें कि मित्रता में सावधानी रखे और अपने विवेक के अंकुश का प्रयोग करती रहे। कुछ दिन पहले की बात है कि एक माँ अपनी पुत्री के साथ हमारे पास आई। माँ ने बताया कि पुत्री दिल्ली पढ़ने जा रही है। यूं तो वह हमारे प्रवचन सुनती रहती थी फिर भी माँ की अपेक्षा थी कि हम उससे कुछ कहें । मैंने कहा बेटा, तुम्हारे माँ-बाप मन में बहुत बड़े अरमान पालकर न जाने कितनी अच्छी सोच बनाकर, अपना धन खर्च करके तुम्हें दूर रखने की रिस्क उठाकर, तुम्हें अकेले दिल्ली भेज रहे हैं, जीवन में सावधान रहना किसी एक के दिल को रखने के लिए ज़िंदगी में दो दिलों को मत दुखाना।' सखा हो कृष्ण-सुदामा जैसे आप कॉलेज में पढ़ते हैं, युवक-युवतियों को दोस्त बनाएं पर अपनी सीमाएं जरूर रखें। दोस्ती के बीच अगर आप सीमाएं नहीं रखते तो यह अमर्यादित मित्रता मित्र और आपके अपने घर, दोनों के लिए विनाश का कारण बन सकती है। ढेर सारे मित्रों को एकत्र करने का कोई औचित्य नहीं है, अगर वे आपके विकास में 120 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org|

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