Book Title: Jine ki Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 125
________________ आपका व्यवहार अपने पुरुष या स्त्री मित्र के प्रति इतना खुला हुआ भी नहीं होना चाहिए कि हमारे मित्रतापूर्ण सम्बन्धों पर लोग अंगुलियाँ उठाने लग जाएँ । कई दफा होता यह कि जब हम अपनी सीमाएँ मित्रता के नाम पर खो बैठते हैं तो कई पति-पत्नी एक-दूजे के लिए शक के दायरे में आ जाते हैं। ऐसे लोगों को सदा इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि जब उनके इन सम्बन्धों का कभी खुलासा हो जाता है तो उनकी स्थिति धोबी के गधे की तरह ही होती है । मैं अपनी ओर से केवल इतना निवेदन करना चाहूँगी कि जिस तरह पति-पत्नी का एक-दूजे पर विश्वास रखना जरूरी है उसी तरह विश्वास पर खरा उतरना भी जरूरी है। हर पति-पत्नी को चाहिए कि वह औरों मित्रता स्थापित करने में अपनी सीमाओं का पूरा ख्याल रखें, क्योंकि दाम्पत्य जीवन प्रेम, लगाव, सम्मान और विश्वास पर ही टिका रहता है । निर्मल हृदय, निर्मल आचरण अच्छे, नेक मित्र बनाएँ। ऐसे मित्र बनाएँ जिनके साथ रहना गौरवपूर्ण हो, जीवन संस्कारित और नेक बन सके, बदी से बच सकें और प्रगति के सोपान चढ़ सकें। जीवन में भले ही एक मित्र हो, लेकिन वह ऐसा हो जो आपकी छाया हो, प्रतिरूप हो । आप सबसे सब कुछ छिपा सकते हैं, लेकिन अपने मित्र से जिंदगी की कोई बात नहीं छिपा सकते । इसलिए ऐसा मित्र बनाएँ जिसका हृदय निर्मल हो, मन विराट, दृष्टि पवित्र, मानसिकता श्रेष्ठ और आचरण निर्मल हो । जीवन में आप अगर ऐसे किसी व्यक्ति को, महिला या पुरुष को मित्र बनाते हैं तो यह आपके लिए और उसके दोनों के लिए कल्याणकारी है। शेष तो ब्रह्माण्ड के सभी प्राणियों के लिए मैत्रीभाव, प्रेम और प्रमोद भाव रखें । रवीन्द्रनाथ टैगौर ने कहा है - यदि तोरे डाक सुने कोई न आचे तोए एकला चलो रे - अगर तुम्हारे साथ कोई अच्छा व्यक्ति नहीं है तो चिंता न करो, बुरे लोगों के साथ जीने के बजाय अकेले चलो। तुम अपने मित्र स्वयं बनो । यह एकाकीपन भी तुम्हारे लिए कल्याणकारी होगा । Jain Education International 124 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.

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