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व्यक्ति को सुविधाओं और दुविधाओं के आधार पर बाहर से मिलते हैं लेकिन शांति, प्रसन्नता और आनन्द व्यक्ति के भीतर से फूटते हैं ।
बाहर हैं पल की खुशियां
जो बाहर से मिलते हैं उनमें परिवर्तन होता रहता है लेकिन जो भीतर से आता है वह स्थायी होता है । आप देखें कि बाहर निमित्त व्यक्ति की भावदशा को कैसे प्रभावित करते हैं ? एक व्यक्ति ने पांच रुपये का लॉटरी का टिकिट खरीदा। संयोग की बात, अगले दिन अखबार में देखा कि लॉटरी का पुरस्कार घोषित हो गया है और प्रथम पुरस्कार के टिकट का नंबर उसी के टिकट का है। वह बहुत खुश हो गया। उसके मन में प्रसन्नता समा नहीं रही थी। रविवार का दिन था। उसने अपने पड़ोसियों को, मित्रों को, रिश्तेदारों को सूचना दी कि शाम के समय सांध्य भोज का आयोजन कर रहा हूँ क्योंकि मेरे नाम पाँच लाख की लॉटरी खुल गई है।
शाम के समय उसने भोजन का प्रबंध किया, सभी आमंत्रितों को भोजन कराया और खुद बहुत ही खुश हो रहा था कि उसकी लॉटरी लग गई है। सभी उसके भाग्य की तारीफ कर रहे थे। वह भी जीवन में इतना खुश पहले कभी नहीं हुआ था। सभी लोग भोजन करके चले गए। वह व्यक्ति घर में आकर पलंग पर लेट गया। उसे नींद भी न आई। वह ऊंचे-ऊंचे सपने देखने लगा। पांच लाख मिलेंगे तो सामान्य ही सही, एक कार जरूर खरीदूँगा, पचास हजार लगाकर घर भी सुधरवा लूंगा, अपना बुढ़ापा ठीक ढंग से गुजार सकूँ इसके लिए एकडेढ़ लाख की एफ.डी. भी करवा दूँगा। पाँच-पाँच हजार अपने नाती-पोतों को भी दे दूँगा । वह रात भर ख्वाब देखता रहा कि यह करूँगा, वह करूँगा। सुबह उठा तो उसने अखबार देखा । कल जहाँ विज्ञापन था, आज उसी पृष्ठ पर एक और विज्ञापन था । भूल सुधार का । उसमें छपा था- कल जो लॉटरी का विज्ञापन था उसमें अंतिम अंक तीन के बजाय सात पढ़ा जाए।
कल भी अखबार आया था और आज भी, कल भी विज्ञापन था आज भी, रुपये न कल हाथ में थे और न आज हाथ में है । उसके बावजूद कल का दिन खुशियों में डूबा था और आज का दिन ग़म में ।
तभी तो मैंने कहा कि व्यक्ति सुख और दुःख भीतर से नहीं बल्कि बाहर के निमित्तों से पाता है। निमित्त बदलते रहते हैं । जो निमित्तों के प्रभाव में आकर जीवन जीते हैं उनके दिन कभी सुख भरे और रातें पीड़ा भरी, कभी दोपहर खुशी की और सांझ दुःख की हो जाती है ।
किसी को भी बिजली के बल्ब की तरह नहीं होना चाहिए जिसे जलाना और बुझाना दूसरे के हाथ में होता है। क्या हमारे जीवन की शांति, सुख, प्रसन्नता और आनंद किसी बल्ब की तरह तो नहीं है जा दूसरों में संचालित हो रहा है ? किसी ने हमारी तारीफ की, हमारे मन के अनुकूल बात कही और हम प्रसन्न हो गए। और किसी ने हमारे प्रतिकूल बात कही तो हम अप्रसन्न हो गए। ऐसी खुशियों, ऐसी शति सुख और आनंद हमारे अपने नहीं बल्कि किराए के हैं, उधार लिए हुए हैं। ऐसी प्रसन्नता की कोई उम्र नहीं होती ।
चित में खुश रहें और पट में भी
जिंदगी में सदाबहार प्रसन्न और आनंदचित्त रहने के लिए तो कार की जरूरत होता है, न ही सत्ता
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