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सदाबहार प्रसन्न रहने की कला
ईश्वर हमें वह सब कुछ नहीं दे सकता जो हमें पसन्द हो । इसलिए जो ईश्वर दे उसी में राजी रहना सीखिए ।
परिवर्तन प्रकृति का खूबसूरत अवदान है। जो कल था वह आज नहीं है और जो आज है वह आने वाले कल में स्थायी नहीं रहेगा। प्रकृति की यह व्यवस्था है कि ब्रह्माण्ड में जो आज है वह कल नहीं रहता और जो कल था वह आज नहीं है। परिवर्तन प्रकृति का अखण्ड नियम है। गर्मी का मौसम हो या सर्दी का, सावन की ऋतु
या पतझड़ की, सभी जानते हैं कि इनमें से कोई नहीं टिकते। गर्मी भी चली जाती है और सर्दी भी, सावन भी बीत जाता है और पतझड़ भी । परिवर्तन प्रकृति का धर्म है। कल तक हम जहाँ हरे पत्ते देख रहे थे, वे पीले पड़कर आज हवा में उड़ रहे हैं ।
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जो परिवर्तन पेड़-पौधों, ऋतुओं, फूलों के साथ होता है वैसी ही व्यवस्था हमारे जीवन के साथ भी है जैसे हम इन फूल-पत्ती, ऋतु और मौसम के परिवर्तन को स्वीकार करते हैं वैसे ही जीवन में होने वाले परिवर्तनों भी हमें सहजता से स्वीकार कर लेना चाहिए। परिवर्तन अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के होते हैं । गुमान नहीं, ग़म भी हैं
अगर सूर्योदय होता है तो सूर्यास्त भी होता है । कभी मनुष्य ऊपर उठता है तो कभी नीचे गिरता है इसे प्रकृति की व्यवस्था कह दें या भाग्य की उठापटक पर ऐसा होता है। हर किसी के जीवन में होता है । फिर ऊपर उठने में कैसा गुमान और नीचे गिरने में किस बात का ग़म । ग़म और गुमान व्यक्ति स्वयं उत्पन्न करता है । उठापटक तो जीवन की व्यवस्था है। जो कल तक गुमान कर रहा था, वह आज ग़म में डूबा है और जिस पर कल तक ग़म का साया था वह आज इतरा रहा है। सुख और दुःख तो हमारी सुविधाओं से आते हैं। ये तो उसी को प्रभावित करते हैं जो इनके निमित्तों से जुड़ा रहता है । जो सदाबहार शांत रहकर अपने मन की प्रसन्नता और आनन्द में जीता है वह सुख आने पर गुमान नहीं करता और दुःख आने पर ग़म नहीं करता । सुख और दुःख
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