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प्रसन्नता तो वह चंदन है जिसे तुम भी प्रतिदिन अपने शीष पर धारण करो और यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे द्वार आए तो उसका भी उसी चंदन से तिलक करो। प्रसन्नता तो परफ्यूम की तरह है जिसे रोज सुबह ही अपने ऊपर छिड़क लिया जाना चाहिए। प्रसन्नता तो सुन्दर साड़ी की तरह है जिसे पहनकर मन खुश हो जाए।
प्रकृति ने सभी को चेहरे दिए हैं किसी को काले तो किसी को गोरे। सभी को लगभग एक जैसे ही चेहरे दिये हैं - वही नाक, होंठ, कान, आँख, जिह्वा - लगभग एक से ही दिये हैं। लेकिन उन पर भाव हम ही दिया करते हैं। जैसी व्यक्ति की मनोदशा, भावदशा और सोच होती है वह उस व्यक्ति के चेहरे पर उभर जाती है। जीवन की सर्वोपरि शक्ति है व्यक्ति के अन्तर्मन में पलने वाली शांति और प्रसन्नता। जीवन की सबसे बड़ी सम्पत्ति प्रसन्नता ही है। सर्दी की सुहानी धूप-सी खुशी
हम सोचें कि प्रसन्नता हमें क्या देती है ? कभी आप एक घंटे तक उदास रहकर देखें कि आपका चित्त कितना मलिन होता जा रहा है? आपके मस्तिष्क की कोशिकाएँ सुप्त होती जा रही हैं । बड़े से बड़ा ज्ञानी भी तब कुछ करने में असमर्थ हो जाता है जब उसके मन में नाउम्मीदी प्रवेश कर जाती है। समर्थ और शक्तिशाली भी शक्तिहीन और श्रीहीन हो जाता है। निराशा से घिरने पर याद करें कि वे दो भोजन, एक जो आपने उदासी के क्षणों में किया था और दूसरा जो आपने प्रसन्नता के पलों में किया था, उनके स्वाद में कितना अंतर था! आपकी पत्नी ने स्वादिष्ट भोजन तैयार किया था लेकिन आप चिंताग्रस्त थे, आप पर काम का दबाव और तनाव था अतः वह भोजन आपको फीका और बेकार लग रहा था। दूसरी बार आपकी खोई हुई वस्तु मिल गई थी तो आप बहुत खुश थे और भोजन करने में भी आपको स्वाद आ रहा था। भोजन न तो स्वादिष्ट होता है और न ही बेस्वाद। आपकी मनोदशाओं पर ही भोजन का स्वाद निर्भर है।
प्रसन्नता तो शीत में सुहानी धूप जैसी है और गर्मी में शीतल छाया, शीतल बयार जैसी है। स्मरण रहे, जीवन में आने वाले निमित्त कभी एक जैसे नहीं रहते और न ही खशियाँ एक जैसी रहती हैं। जीवन में मिले सुख
और साधन भी एक जैसे नहीं रहते हैं। सूरज उगता है तो अस्त भी होता है, फूल खिलते हैं तो मुरझाते भी हैं। जब जवानी भी बढापे में तब्दील होती है तो जीवन की खशियाँ कब तक रह सकती हैं? जीवन में आने वाले बदलाव को जो स्वीकार कर लेता है वही अपने जीवन को प्रसन्नता और शांति से जीने में सफल हो पाता है। जब तक आप पद पर थे तो जीवन में खुशियाँ थीं और आज भूतपूर्व हो गए हैं तब भी जीवन में खुशियाँ रखो। पद से प्रसन्नता को मत जोड़ो। किसी भी पद से भूतपूर्व होने पर भी आप प्रसन्न और शांत हैं तो अभूतपूर्व बने रहेंगे और यदि दुख और ग़म में डूब गये हैं तो भूत बनने से आपको कोई रोक न पाएगा। याद रखें, हर वर्तमान को भूतपूर्व होना है। यही है जीवन का सच
मुझे याद है - एक सम्राट को अभिलाषा थी कि वह जीवन के परम सत्य को जाने । इस हेतु उसने बड़ेबड़े पंडितों, ऋषियों, मुनियों व ज्ञानियों को बुलाया। वे लोग आते और अलग-अलग शास्त्रों की बातें बताकर
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