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गौशालाओं में गए लेकिन कोई भी उस घायल गाय को रखने को तैयार नहीं हुआ । आखिर में उन्होंने किसी व्यक्ति को इस गाय की व्यवस्था का जिम्मा सौंपा और वह स्वस्थ न हो जाये तब तक पालन-पोषण की जवाबदारी दी। वे उसे आवश्यक रुपये देकर आ गए। शाम को वापस हमारे पास पहुँचे। चूँकि सूर्यास्त के बाद वे कुछ खाते पीते नहीं हैं अतः उस दिन भी उनके उपवास ही हुआ। पर उनके चेहरे पर गाय के उपचार कराने की खुशी ऐसे झलक रही थी कि मानो उन्होंने बहुत बड़ी उपलब्धि पा ली हो। हम उस शहर में पहुँचे। जहाँ गाय का उपचार हो रहा था हम वहाँ गए। उस गाय को अपने पाँवों पर धीरे-धीरे चलते हुए देखकर हमें हृदय में इतनी प्रसन्नता और खुशी मिली जिसकी कोई हद नहीं थी ।
आज की इस प्रतिस्पर्धा और तनाव भरी जिंदगी में जो और जैसा भी हमें मिला है, उसमें खुशियों को ढूँढना निहायत जरूरी हो गया है। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो आप यह मान कर चलें कि अनेक सुख-सुविधाएँ होने के बावजूद हम असंतुष्ट और दुःखी रहेंगे। अगर जीवन के इर्द-गिर्द घटने वाली घटनाओं में हम खुशी को ढूंढेंगे तो जीवन का पल-प्रतिपल खुशहाल होगा। स्वर्ग और नरक और कुछ नहीं है बल्कि हमारी मन की स्थिति से जुड़े हुए हैं। हमारा मन चाहे तो स्वर्ग को नरक बना सकता है और मन चाहे तो नरक को स्वर्ग । जीवन के हर तनावपूर्ण वातावरण में भी अन्तर्मन में सहज मुस्कान बनाए रखना प्रसन्नता के दो फूल खिलाने की तरह है ।
जीवन में कई बार निःस्वार्थ कार्य करके भी व्यक्ति खुशियों को प्राप्त करता है । जैसे आपके बच्चे का जन्मदिन है, बजाय इसके कि आप अपने दोस्तों और परिचितों को इकट्ठा करके किसी होटल में जाकर पाँच हजार रुपये पानी करें, यदि किसी अनाथालय, सार्वजनिक अस्पताल अथवा ऐसे ही किसी स्थान पर इन रुपयों को खर्च करें तो आप चिरस्थायी खुशियाँ पा सकते हैं ।
मैं अपनी ओर से आपको नेक सलाह देना चाहूँगा कि यदि आपने पिछले वर्ष अपनी संतान के जन्मदिन पर घूमने-फिरने, खान-पान में दो हजार खर्च किये हैं तो इस वर्ष आप इन सब कार्यों में खर्च करने की बजाय अपने बच्चे को साथ लेकर किसी अनाथालय, कोढीखाना अथवा ऐसे ही किसी स्थान पर जाएँ और अपने बच्चे के हाथों से उन सबको भोजन करवाएँ। किसी झोंपड़पट्टी में जाकर आप जरूरतमंद बच्चों को कपड़े दें। उन्हें पढ़ने और लिखने के साधन दें और कुछ नहीं तो कम से कम किसी अस्पताल में ही चले जाएँ आप और किसी ऐसे रोगी की तलाश कर लें जिसको दवा की आवश्यकता हो पर आर्थिक अभाव में वह उसकी व्यवस्था न कर पा रहा हो। आप उसको अपने बेटे के हाथ से दवा दिलवाएँ। किसी गरीब व्यक्ति का अगर कोई ऑपरेशन होने वाला है और उसके पास आवश्यक व्यवस्था नहीं है तो आप अपने पुत्र के जन्मदिन पर वास्तविक खुशियाँ पा सकते हैं उसका ऑपरेशन अपनी ओर से करवा करके । आपकी दवा के बदले उस रोगी के द्वारा दी गई दुआएँ आपके पुत्र के जीवन-विकास में ईश्वर की कृपा बनकर संबल प्रदान करेगी।
आप इतना भी न कर सकें तो बाजार से पाँच किलो मौसंबी ले जाएँ और सरकारी अस्पताल में जाकर अपने या अपनी पत्नी के हाथ से मौसंबी का जूस निकलवाएँ और ऐसे रोगी को अपने पुत्र के हाथों पिलवाएँ जो उसकी व्यवस्था न कर पा रहा हो। आप उन पलों में अनुभव करेंगे कि उस रोगी के जूस पीते समय आपके मन
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