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चेहरे पर प्रकट होने लगता है। महावीर तो निर्वस्त्र रहते थे- हवा, धूप, पानी में भी । फिर भी उनका सौन्दर्य अप्रतिम था। आपने महर्षि अरविंद का वृद्धावस्था का चित्र देखा है ? उनके चेहरे का ओज, तेज और सौन्दर्य कितना अधिक आकर्षक था ? बुढ़ापे में उसी का चेहरा बदसूरत होता है जिसके विचार सुन्दर नहीं होते। जिसकी विचारदशा सुन्दर होती है, वह जैसे-जैसे बूढ़ा होता है, उसके चेहरे पर सौन्दर्य छलछलाने लगता है।
किसी के कल्याण के लिये अपनी ओर से जो कुछ भी हो सके, कर दो। अगर नहीं कर सको तो सहज रहो, अपने मन को हमेशा निर्मल रखो। मैंने सुना है - अमेरिका में एक भिखारी था। जब वह मर गया तो पुलिस उसके शव को अन्त्येष्टि के लिये उठाने आई। वह सड़क के किनारे ही रहता था, अतः उसका सामान भी वहीं पड़ा था। पुलिस ने वहाँ दो थैले देखे । उनमें फटे-पुराने कपड़े थे और थी बैंक की एक पासबुक और एक चैकबुक । पासबुक में देखा तो पाया कि उसके नाम से बैंक में साढ़े तीन लाख डॉलर जमा थे और चेक बुक को टटोला तो उसमें एक ब्लैंक चेक पर साइन किए गए थे। चेकबुक पर एक नोट लिखा हुआ था कि मैंने भीख माँग-माँगकर ये पैसे जमा किए हैं, इनका उपयोग मेरे मरने के बाद, मुझ जैसे ही मांगने वाले लोगों के कल्याण लिए किया जाए। जब मैंने इस घटना के बारे में जाना तो मेरे दिल ने कहा
किसी को भी हो न सका उसके कद का अंदाज,
आसमां था, पर सर झुका के जीवन भर बैठा रहा ।
आप इतने महान् भले ही न बन सकें पर इतनी विराटता जरूर दिखा सकते हैं कि अपने मन की कटुता, कलह, संघर्ष की भावना को कम करें। अगर आपके पाँव में काँटा चुभ जाए और आप चलते रहें तो वह आपको तकलीफ देता रहेगा लेकिन उस कांटे को निकाल दिया जाए तो आपको अवश्य ही राहत मिलेगी। इसी तरह आपके मन में जो काँटे चुभे हुए हैं, उन काँटों को बाहर निकाल दें तो आपको बहुत राहत मिलेगी। जिस दिन आपने उन काँटों को निकाल दिया तो मान लीजिए उस दिन संवत्सरी हो गई, क्षमापना हो गई, पर्युषण हो गए, आप वीतद्वेष हो गए। वीतराग होना हमारे हाथ में हो या न हो पर वीतद्वेष होना तो हमारे हाथ में ही है । प्रतिशोध को कैसे मिटाएँ ?
प्रतिशोध मिटाने का पहला उपाय है : अपने भीतर सहनशीलता का विकास करें। याद है न, जीसस क्राइस्ट को सूली पर लटकाने में उनके ही दो शिष्यों की प्रमुख भूमिका रही। क्रॉस पर लटकाते समय उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उन्होनें उन्हीं दो शिष्यों को अपने सामने बुलाने के लिये कहा। दोनों शिष्यों को जीसस के सामने लाया गया। वे दोनों थर-थर काँप रहे थे कि पता नहीं जीसस हमें क्या दुराशीष देंगे लेकिन जीसस ने एक पात्र में दूध और जल मंगवाया और उन दोनों शिष्यों को एक चौकी पर बिठाकर उस जल से उनके पाँवों का प्रक्षालन किया ताकि उनके स्वयं के मन में भी उन दोनों के प्रति किसी भी प्रकार की दुर्भावना न रह जाए। उनके अंदर इतनी सहनशीलता थी कि उन्होंने वह पात्र उठाया, दोनों गुरुद्रोही शिष्यों के पाँव धोये और उन्हें अपने बालों से पोंछा। फिर कहा-' 'हे प्रभु, तू इन्हें माफ करना क्योंकि ये नहीं जानते हैं कि ये क्या कर रहें हैं ?' जिसके भीतर इतनी सहनशीलता होती है वह प्रतिशोध और वैर का जवाब प्रेम से देता है, काँटो का जवाब फूलों से देता
है
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