Book Title: Jine ki Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 75
________________ दूसरा गुण है - प्रेम और विनम्रता - जिससे व्यक्ति जीवनभर अपने काम करवा सकता है। झुकता वही है जिसमें जान है। अरे, अकड़पन तो मुर्दे की पहचान है। जिनके जीवन से भीतर का सत्य निकल जाता है, वे लोग हमेशा अकड़े ही रहते हैं । याद रखें, अहंकार के हथौड़े से ताला टूटता है, वहीं प्रेम की चाबी से ताला खुलता है। जिसमें लघुता का भाव है, विनम्रता है, उसी में प्रभुता का बसेरा होता है। जिसमें अहंकार भरा है, वह चाहे जितनी पूजा, आराधना, तपस्या करता रहे परमात्मा उसके भीतर कभी साकार नहीं हो सकते । खाली घड़ा, पानी में चाहे जब तक पड़ा रहे, लेकिन वह तब तक नहीं भरता है जब तक वह झुकने को तैयार नहीं होता है । ज्ञान और अहंकार परस्पर दुश्मन हैं। जीवन में विनम्रता, सदाशयता लाएँ, तभी जीवन सुचारु ढंग से चल सकेगा। अपने जीवन की गाड़ी की धुरी में विनम्रता और सदाशयता का ग्रीस लगाएं ताकि गाड़ी बिना आवाज किये आराम से चल सके। जीवन की गाड़ी गति से चले इसलिये विनम्र बनें रहें अन्यथा खटर-खटर की आवाज आती रहेगी। जीभ नरम रहती है, कोमल होती है अत: जन्म से मिलती है और मृत्यु तक रहती है, पर दाँत कठोर होते हैं अत: जन्म के बाद मिलते हैं और मृत्यु से पहले टूट जाते हैं। विनम्रता के तीन लक्षण हैं- कड़वी बात का मधुर जवाब दें, क्रोध के वातावरण में चुप्पी साध लें और किसी गलती पर मन में क्षमा भाव को स्थान दें। शरीर में स्वास्थ्य रहे, मन में आनंद रहे, बुद्धि में सद्ज्ञान रहे और अहंकार में विनम्रता रहे। वे लोग ही महानता उपलब्ध कर पाते हैं जो विनम्र हैं। उन्हीं की पूजा होती है जो विनम्र होते हैं। आप जितने बड़े हैं उतने ही छोटे काम करने को तत्पर रहिए। आपको याद होगा कि जब पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया था तो श्री कृष्ण ने उनसे पूछा कि उन्हें क्या कार्य दिया जाएगा? पांडवों ने कहा, 'हम आपको क्या जवाबदारी सौंप सकते है ? आप जो भी करना चाहें, खुद ही मांग लीजिए।' कृष्ण मुस्कुराए और बोले, 'ठीक है, अगर मुझे ही कार्य का चयन करना है तो मैं चाहूँगा कि यज्ञ में आए हुए सभी ऋषि, ब्राह्मण, और अतिथियों के चरणप्रक्षालन मैं करूँ।' ज्ञानी वही जो स्वीकारे अज्ञान भगवान् वे नहीं जो स्वयं को भगवान् मानते हैं बल्कि वे ही भगवान् होते हैं जो औरों को भगवान् होने का सम्मान देते हैं। जो खुद को महान् मान लेते हैं उनसे अधिक हीन दुनिया में अन्य कोई नहीं होता। जिसने अपने जीवन के अज्ञान का बोध पा लिया है वही ज्ञानी होने का अधिकारी है। सुकरात के समय में यूनान में ज्ञान की देवी 'डेल्फी' प्रकट हुई, जो भविष्यवाणी किया करती थी। लोगों ने पूछा कि दुनिया का सबसे अधिक ज्ञानी व्यक्ति कौन है ? देवी ने कहा, 'आज की तारीख में दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी व्यक्ति तुम लोगों के शहर में ही है।' सबमें उत्सुकता जगी कि 'कौन?' 'सुकरात', देवी ने उत्तर दिया। शहर के लोग सुकरात के पास गये और उन्हें कहा, 'देवी ने घोषणा की है कि आप दुनिया के सबसे महान् ज्ञानी व्यक्ति हैं।' सुकरात ने कहा, 'लगता है, देवी से घोषणा करने में कुछ भूल-चूक हो गई है। अरे, मैं तो 74 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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