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दुनिया का सबसे बड़ा अज्ञानी हूँ।' लोग देवी के पास वापस आये और सुकरात ने जो कहा था वह बताते हुए पूछा कि, 'क्या सुकरात झूठ बोल रहे हैं ? वे तो कहते हैं कि मैं तो दुनिया का सबसे बड़ा अज्ञानी हूँ।' देवी ने कहा, 'भक्तों, दुनिया में जिसे अपने अज्ञान का बोध हो गया है, वही तो सबसे बड़ा ज्ञानी है । '
एक घटना और है- शाक्य वंश के सात राजकुमार भगवान् बुद्ध का प्रवचन सुनने पहुँचे। भगवान् की गूढ़, किन्तु सरल प्रवाहमयी वाणी सुनकर वे प्रभावित हुए और प्रवचन सुनते-सुनते वैराग्य से जुड़ गए। उन्होंने निश्चय किया कि वे भी भिक्षु बनेंगे। उन्होंने खड़े होकर निवेदन किया- 'भगवन्, हम भी आपके श्रीचरणों में दीक्षित, प्रव्रजित होना चाहते हैं। हम भिक्षु बनना चाहते हैं।' बुद्ध ने कहा, 'अगर तुम्हारे मन में प्रबल वैराग्य जगा है तो मैं तैयार हूँ ।' राजकुमारों ने सोचा कि अगर माता-पिता के पास आज्ञा लेने जाएँगे तो शायद वे तैयार न हों कि हम दीक्षा लें । अत: अच्छा तो यह होगा कि हम दीक्षित होकर ही अपने माता-पिता को सूचना भिजवा दें।
उन राजकुमारों के साथ उनका सेवक भी आया था। उस सेवक ने ता-उम्र उनकी सेवा की थी, हर प्रकार से उनका ध्यान रखा था अतः उन्होंने सोचा कि इसने हमेशा हमारी सेवा ही की है इसलिये अपने वस्त्र - आभूषण आदि सभी इसको ही दे देते हैं। राजकुमारों ने ऐसा ही किया। सेवक तो बहुत प्रसन्न हुआ क्योंकि जिसे जीवन में कभी सोने की अंगूठी भी न मिली थी, उसे अचानक इतने सारे आभूषण और वस्त्र मिल गए थे। उसने सब सामान तुरंत-फुरंत इकट्ठे किये और दौड़ पड़ा अपने गृह नगर की ओर यह सोच कर कि कहीं राजकुमारों का मन न बदल जाए। राजकुमारों ने सेवक से कहा, 'तुम जाकर हमारे पिताजी महाराज को सूचना देना कि आपके सातों पुत्र राजकुमार संन्यासी हो गए हैं और उन्होंने आपसे क्षमा चाही है कि बिना आपकी अनुमति लिए उन्होंने संन्यास ले लिया है। सेवक ने चलते-चलते उनकी यह बात सुनी और वह तेजी से निकल गया।
गहनों में नहीं बहना
आभूषणों की पोटली लेकर भागते हुए दो-तीन मील पहुँचा होगा कि एक पेड़ के नीचे विश्राम हेतु बैठ गया। बैठते ही उसे विचार आया कि अगर मैं राजा को सातों राजकुमारों के संन्यास लेने की खबर सुनाऊँगा तो राजा शायद विश्वास न करे और मेरे पास वस्त्र - आभूषणों को देखकर सोचने लगे कि कहीं मैंने ही तो उन राजकुमारों की हत्या नहीं कर दी है और माल लेकर आ गया हूँ। वह बार-बार गहनों को देखता और खुश होता लेकिन तभी उसके मन से एक आवाज और उठी, 'हे सेवक! तू बार-बार उन गहनों को देखकर प्रसन्न हो रहा है जिनका राजकुमारों ने त्याग कर दिया है। जरूर ही उन लोगों को इससे भी बड़ी कोई चीज मिली है जिसके लिये उन्होंने इन गहनों का त्याग कर दिया है। अरे, अब मैं घर जाकर क्या करूँगा ? मैं भी उस रास्ते पर जाऊँगा जिस पर सातों राजकुमार गए हैं।' वह वापस बुद्ध के पास आ गया।
अहम् मिटे, तो अर्हम् जगे
सातों राजकुमार मुंडित हो चुके थे। भिक्षु बनने के लिये काषाय वस्त्र भी पहन चुके थे। भगवान के सामने वे करबद्ध खड़े थे प्रव्रज्या का मंत्र सुनने के लिए। तभी सेवक वहाँ पहुँचा और बोला, 'हे राजकुमारों, तुम्हारे दिव्य मार्ग को देखकर मेरा मन बदल गया है। मैं भी संन्यासी बनना चाहता हूँ।' उसने भी मुंडन करवा लिया और
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