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अपितु हमारे स्वाभिमान को जाग्रत कर जीवन में कुछ कर गुजरने का मौका देगी। ईगो को कहें 'गो'
व्यक्ति के अहंकार को जब चोट लगती है तो उसे गुस्सा आता है जब तक तुम्हारा अहंकार संतुष्ट होता रहेगा, तुम सामने वाले से खुश ही रहोगे किन्तु अहंकार को चोट लगते ही तुम गुस्सा कर बैठोगे। अहंकार क्रोध का पिता है। क्रोध का एक और भी कारण है और वह है 'आलोचना'। किसी ने अगर हमारे लिए विपरीत टिप्पणी कर दी तो हम तत्काल गुस्सा कर बैठेंगे। लोगों का तो काम है औरों पर अंगुलियाँ उठाना और दूसरों की बातें करना। जब भी दो-चार लोग आपस में बात करते हैं तो वे दूसरों के लिए हमेशा विपरीत टिप्पणी किया करते हैं। परिणामस्वरूप मामला सुलझने की बजाय और भी अधिक उलझ जाता है। अगर आठ लोग किसी बिंदु पर निर्णय करने के लिए एक जगह बैठे हैं और यदि वे पहले से ही सोच कर बैठे हैं कि हमें इस मामले को उलझाना है तो वे उसे कभी भी सुलझा नहीं सकेंगे। यदि वे पहले से ही उसे सुलझाने की सोचते हैं तो किसी भी बात को सुलझाने में दो मिनट लगते हैं। शांतिपूर्ण ढंग से समाधान करने पर समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। साथ ही क्रोध से भी नष्ट होने वाले संबंधों को भी सुरक्षित रखा जा सकता है। सॉरी कहें, सुखी रहें
अगर किसी कारणवश कभी झगड़ा भी हो जाए तो वह केवल विचारों के पारस्परिक टकराव से ही होता है और फिर वह विकराल रूप लेकर आपके जीवन को प्रभावित भी कर सकता है। ऐसी स्थिति में दो में से अगर एक व्यक्ति अपने मन के आवेग को नियन्त्रित रखे है तो मामला जल्दी शांत हो जाता है। आप झगड़े को टालने की कोशिश करें और यदि कोई छोटी-सी बात हो तो 'सॉरी' कहकर सलटा लें। अगर हमारे झुकने से मामला शांत हो रहा हो तो झुकना बुरी बात नहीं है। अगर सामने वाला हो-हल्ला कर भी रहा है तो भी आप शांति से जवाब दें। छोटी-सी बात को झगड़े का रूप कभी न दें क्योंकि कोई भी झगड़ा चिंगारी के रूप में शुरू होता है और दावानल बनकर खत्म होता है। पता नहीं गुस्से में व्यक्ति कैसे-कैसे काम कर बैठता है ? आदमी गुस्से में आकर अपने बेटे को मार देता है। परिवार को तहस-नहस कर देता है। प्रेमी भी अपनी प्रेमिका पर तेजाब छिड़क देता है। और तो और मिट्टी का तेल डाल कर खुद के ही तुली लगा लेता है। गुस्से में आदमी कौनसा अनर्थ नहीं कर बैठता?
गुस्से को आप कभी भी आदत न बनने दें। अगर हम रोज-ब-रोज गुस्सा करेंगे तो हमारा गुस्सा प्रभावहीन होता जाएगा और धीरे-धीरे हमारे मित्र भी कम होते जाएँगे। आप कभी किसी गुस्सैल व्यक्ति को अपने सामने देख कर भले ही कुछ बोलें या न बोलें पर पीछे से उसका सब उपहास ही उड़ाते हैं । क्रोधी से तो वैसे ही लोग कन्नी काट कर रखते हैं। जिसको बोलने का विवेक नहीं, उससे भला कौन माथा लड़ाये ? बैल के सींग में कौन जान बूझकर सिर मारे? छोटी-मोटी बातों को लेकर घर में महाभारत न मचायें। सबसे अपनी ओर से प्रेम से और मधुर वाणी से बोलें ताकि आपको जिंदगी में औरों से प्रेम मिल सके।
जिस बात को आप गुस्से में भरकर कड़वे शब्दों में कह रहे हैं, दो पल ठहरें अपने हृदय को प्रेम से
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